Hinduism

मंदिरों की भूमि की लूट

तमिलनाडु में मंदिरों की भूमि के संबंध में 2019 की एक रिपोर्ट के अनुसार तमिलनाडु में अतिक्रमण केवल मंदिर भूमि और भवनों तक सीमित नहीं है, अपितु संपूर्ण मंदिर ही अतिक्रमित हो चुके हैं। तंजावुर में थोप्पुल पिल्लयार मार्ग पर स्थित शिव मंदिर को एक निवास में परिवर्तित कर दिया गया है। तंजावुर के बाहरी क्षेत्र में गणेश जी के एक मंदिर पर अतिक्रमण किया गया है।

तमिलनाडु में मंदिरों से संबंधित भूसंपत्तियों के लिए काम करने वाले संगठन टेम्पल वर्शिपर्स सोसाइटी के अध्यक्ष टी. आर. रमेश बताते हैं कि तिरुवन्नमलाई मंदिर की भूसंपत्तियों पर बहुत सारे अतिक्रमण हैं। संबंधित मामलों पर न्यायालय में मुकदमे चल रहे हैं। उन्होंने बताया कि ‘केवल तिरुवन्नामलाई मंदिर की लगभग 90 प्रतिशत भूसंपत्तियां पिछले 30-40 वर्षों से अतिक्रमित हैं और सरकार ने उन मामलों पर अब तक कुछ नहीं किया है।’ ध्यातव्य है कि पुराने मामले लंबित हैं और नए अतिक्रमणों का अबाध सिलसिला जारी है। न्यायालयीन प्रक्रिया और पद्धति को दृष्टिगत रखते हुए विचारणीय है कि क्या कभी उन मामलों पर भी सुनवाई होगी?

कन्वर्जन भारतीय सामाजिक-सांस्कृतिक ताने-बाने को क्षति पहुंचा रहा है। दक्षिण भारत में, विशेषकर तमिलनाडु में, केवल मिशनरी एवं मजहबी ही अतिक्रमण नहीं कर रहे हैं, अपितु हिन्दू विरोधी सरकारें भी मंदिरों की भूमि अवैध रूप से सरकारी प्रकल्पों/ संस्थानों को आवंटित कर रही है। डीएमके के शासन काल में मंदिरों की भूमि शैक्षिक संस्थाओं सहित अनेक सरकारी संस्थाओं को आवंटित की जाती रही है। बहुत अतीत में न जाते हुए केवल पिछले दो दशकों में डीएमके के शासन काल में स्थापित संस्थानों को आवंटित भूमियों का आकलन करें तो स्पष्ट होता है कि बहुतांश मंदिरों की ही भूमि है। इससे चर्च की सत्ता और अल्पसंख्यकों को बल मिलता है और वोट बैंक मजबूत होता है। ऐसे अनेकानेक मामलों में टेम्पल वर्शिपर्स सोसाइटी सरकार से मंदिर भूमि वापस लेने के लिए संघर्ष कर रही है परंतु जब पूरी व्यवस्था को ही कन्वर्ट कर दिया गया हो तो स्थिति की गंभीरता का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है।

मिशनरी की राजनीति में घुसपैठ

हिन्दू मुन्नानी के संस्थापक राम गोपालन ने 2015 में एक पत्रिका को दिए गए साक्षात्कार में द्रविड़ पार्टी और कम्युनिस्टों पर निशाना साधते हुए कहा था कि ‘कौन कहता है कि तमिलनाडु पंथनिरपेक्ष राज्य है? यह हिन्दू विरोधी राज्य है। वोट बैंक की राजनीति के कारण ही इनके दोहरे मापदंड और छलपूर्ण कृत्य हैं। इन्होंने व्यवस्था को भ्रष्ट कर दिया है।’

भू-राजनीति में भूमि अतिक्रमण और कन्वर्जन से सत्ता में हस्तक्षेप की संभावना बढ़ जाती है। चर्च का इतना एकाधिपत्य है कि चर्च जिसे कहेगा, अनुयायी उसी को मतदान करते हैं। अतः राजनेता उनके समर्थन के लिए लालायित रहते हैं। स्पष्ट है कि लोकसभा चुनावों (2019) से पूर्व तमिलनाडु के चर्चों ने डीएमके को समर्थन देने की घोषणा अकारण ही नहीं की थी। डीएमके के शासन काल में मंदिरों की भूमि लूट के रूप में प्रयुक्त होती रही है। हिन्दुत्व में विश्वास रखने वाले स्थानीय बताते हैं कि डीएमके का कन्वर्जन को खुला समर्थन है। अन्यथा चर्चों द्वारा आयोजित कार्यक्रमों में इन नेताओं का खुल कर जाना और चर्च निर्माण संबंधी गतिविधियों हेतु सरकारी निधि प्रदान करना संयोग नहीं कहा जा सकता। तिरुवन्नामलाई के मामले में भी डीएमके विधायक ने सरकारी निधि का आवंटन किया है।

ऐसे अतिक्रमणों से ज्ञात होता है कि कन्वर्जन का एजेंडा लेकर चलने वाले प्रायः हिन्दुओं के तीर्थस्थानों को लक्ष्य बना कर अपने पैर पसार रहे हैं। कन्याकुमारी में प्रमुख स्थानों पर स्थापित सलीब और चर्च इस बात के प्रमाण कहे जा सकते हैं। रामेश्वरम जैसी हिन्दू आस्था भूमि पर भी तीन-तीन चर्च इस बात को प्रमाणित करते हैं कि हिन्दुओं के तीर्थस्थानों पर सुनियोजित अतिक्रमण एवं कन्वर्जन से सांस्कृतिक हमले किए जा रहे हैं।

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