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लतादीदीजैसा सेवाभाव रखना यही होगी संगीतके हिमालयाको सच्ची श्रद्धांजली – सरसंघचालक मोहन भागवत

पुणे. दि.२७ – लतादीदीकेलिए मनके अंदर जितनीभी भावनाएँ है, उनको शब्दोंमें कहना मुष्कील हो जाता है.. पूरे भारतवर्षमें सबको तणावमुक्त करनेवाला वो प्यारासा सूर गुम हो गया है… कहीं खो गया है…लतादीदीकी अपनी निजी जिंदगीकी शुचिता, अनुशासन, कडी तपस्या और करुणा जैसे गुण हमने आपनीभी जिंदगीमें आपनाने जरूरी है| यहीं होगी इस संगीतके हिमालयाको सच्ची श्रद्धांजली, इन शब्दोंमें रा.स्व. संघके सरसंघचालक मोहन भागवतजीने लतादीदी केलिए आपनी भावनाएँ व्यक्त की है| भारतरत्न, स्वरसम्राज्ञी लता मंगेशकरजीको दीनानाथ मंगेशकर रूग्णालयाकी तरफसे श्रद्धांजली सभाका आयोजन किया गया था| इसी कार्यक्रममें सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवतजी प्रमुख वक्ताके रूपमें बोल रहे थे|
पुनामें गणेश कला क्रीडा मंच पर आयोजित इस सभामें लतादीदींकी स्मृतियोंको उजागर करनेकेलिए देश विदेशसे उनके बहोतसे चाहनेवाले आये थे| पंडित हृदयनाथ मंगेशकर, जानी मानी गायिका आशा भोसले, उषा मंगेशकर, मीना खडीकर, आदिनाथ मंगेशकर ये सब मंगेशकर परिवारके सदस्य कार्यक्रममें मौजुद थे| विद्या वाचस्पती शंकर अभ्यंकर, विश्वशांती विद्यापीठके संचालक डॉ. विश्वनाथ कराड, संगीत दिग्दर्शक रूपकुमार राठोड आदि इस कार्यक्रमकेलिए खास उपस्थित थे|


डॉ. भागवतजीने आगे कहा की, दीनानाथ मंगेशकर हॉस्पिटलकी स्थापना, ये दिदीका महान कार्य हम सब जानते है, परंतु इसके सिवाभी दादरा नगर हवेली मुक्तीकेलिए आपने साथीयोंके साथ किया हुआ काम हो, किसी गरीबकी मदद हो, किसीभी जरूरतमंदकेलिए वो खडी हो जाती थी|


दीदीने देशकेलिए कई सारे कार्यमें आपना सहयोग चुपकेसे दिया है, वो सब तो हम नही जानते| जीवनके अलौकिक तत्त्व बहोतसे रूपोमें हमें मिल जाते है| अपनी साधना पूर्ण करके वो इस दुनियासे चले जाते है| लतादीदी उनमेंसे एक अलौकीक तत्वं थी| उनका स्वर चिरंतन है| उन्हें जबभी मिला हूँ , उस मुलाकातमें हमेशा असीम शांतीका अनुभव किया है| जीवनकी जो भी सत्यता है, उस स्थितीको उन्होने स्वीकार कर लिया था| अपने पिताको अंतसमयमें ठिकसे उपचार मिले नहीं, ये बात दिलकी गेहराईसे याद रखकर उन्होने समाजमें किसी अन्यको इसतरहका दुख न झेलना पडे, इसीलिए आपने पिताजीके नामपर इसी पुनामें दीदीने अस्पताल खोला और इस अस्पतालके माध्यमसे अपने सेवाभावका आदर्श समाजके सामने रखा| मंगेशकर परिवारका दुख बहोत बडा है, उनको सांत्वना देना बडी कठीण बात है| दीदीका स्वर हमारे साथ हमेशा हमेशाकेलिए चिर स्वरूप रहेगा|” इन शब्दोमें मोहनजीने अपनी श्रध्दांजली अर्पित की|
इस कार्यक्रममें हृदयनाथ मंगेशकरजीने कहा, ” अब मेरी जिंदगीमें केवल अंधेरा छा गया है| लगता है की ८० साल साथ रहकरभी दीदीको मैं ठिकसे समझ नहीं पाया| इस पुरे जगमें मेरेलिए दो ‘माऊली’ माँ स्वरूप मैं मानता हूँ | एक आलंदीके संत ज्ञानेश्वर और दूसरी मेरी दीदी. गदगद होकर उन्होंने कवी कुसुमाग्रजके ‘पृथ्वीचे प्रेमगीत’ इस प्रसिध्द मराठी कविताकी पंक्ती ” मला वाटले विश्व अंधारले ” (अर्थ- मुझे लगता है जगमें अंधेरा छा गया है) प्रस्तुत किया|

लातादीदीकी बेहन सुप्रसिध्द गायिका आशा भोसलेजीने कहा, ” दीदीके जानेकेबाद लगता है जैसेके फिरसे हमारे पिताजीही हमें छोडकर चले गये है..हम सब सच मायनोमें अनाथ हो गये है..” दीदींकी यादोमें उनकी आँखें नम हुई और गला भर आया था| गरगद स्वरोमें आशाजीने दीदीकी कई याँदें साँझा की.. उनके भावभिने शब्दोंसे पूरा सभागृह भावविवश हो उठा|


इसी कार्यक्रममें डॉ. विश्वनाथ कराड और विद्यावाचस्पती शंकर अभ्यंकरजीनेभी लताजीकेलिए अपनी भावनाएँ व्यक्त की| दीनानाथ रुग्णालयके वैद्यकीय संचालक डॉ. धनंजय केळकरजीने सभाका प्रास्ताविक किया| विभावरी जोशीकी गायी कवि वसंत बापटकी रचना ” गगन सदन तेजोमय” इस प्रार्थनासे सभाका प्रारंभ किया गया|

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