Islam

औरंगजेब ने काशी को उजाड़ा

राजेश झा

अठाहरवीं सदी की काशी पहले मुसलमानों के अधीन रही फिर अंग्रेजों के।

औरंगजेब के हाथों 18 अप्रैल 1669 ईस्वी में काशी विश्वनाथ बाबा का ही देवालय विध्वस्त नहीं हुआ था बल्कि काशी में हिन्दुत्व के जितने भी शिक्षण केंद्र, देव-स्थल व विद्या भवन थे, सभी विनष्ट हुए थे।

औरंगजेब के मृत्यु के बाद मुगल सत्ता बड़ी तेजी से अवसान की तरफ बढ़ी।अब काशी पर अवध के नवाबों का कब्जा था।

अवध के शासक व दिल्ली में विजारत पद पर आरूढ़ रहे सफदरजंग जिसे इतिहासकार हिन्दुओं के प्रति बड़ा उदार व सहिष्णु बतलाते हैं, उसी ने अपने शासनकाल में जब देखा कि मराठे काशी को हस्तगत करने पर आमादा है तो उसने कूटनीति और कट्टरता का सहारा लेते हुए 1744 ईस्वी में काशी के समस्त भद्र ब्राह्मणों को अल्टीमेटम दिया —- ‘अगर मराठा पेशवा बालाजी बाजीराव ने बनारस पर धावा बोला और ज्ञानवापी मस्जिद का विध्वंस हुआ तो तुम सबका सिर खड़े खड़े कतर दिया जायेगा।’

सफदरजंग के इस खुदाई आदेश के बाद काशी की समस्त ब्राह्मण मण्डली बालाजी बाजीराव के सम्मुख करबद्ध निवेदन करते हुए प्रस्तुत हुई तथा ज्ञानवापी मस्जिद को विध्वस्त न करने की कायर अपील करने लगी। इतना ही नहीं इन ब्राह्मणों ने गिड़गिड़ाते हुए बालाजी से क्षमा याचना मांगते हुए यह भी दरखास दी कि —- ‘रुहेलों पठानों, शियाओं, तुर्कों, मुगलों, अफगानों के द्वारा मराठों के चले जाने के बाद उन्हें जिंदा बोटी बोटी काट डाला जायेगा।’

इसके बाद बालाजी के हाथ से केवल ज्ञानवापी परिसर की अपवित्रता और कलंक को दूर करने का ही मौका न जाता रहा बल्कि हिन्दुत्व और सनातन जीवन धारा के सबसे महिमामय पावन स्थल का भी अधिग्रहण किया जाना रुक गया।

बालाजी ने इसके बावजूद 2 अप्रैल 1759 को हिन्दू पद पादशाही के उत्तर भारत में विजय अभियान के दौरान सिंधिया के दीवान को पत्र लिखा कि वह अवध के नबाव शुजाउद्दौला से मिलकर मेरे पिता बाजीराव के समय दिए गए वचन के अनुसार हिन्दुओं के तीनों पावन-तीर्थ केंद्र —- प्रयाग, बनारस व अयोध्या तत्काल मराठों को हस्तगत करे। दीवान के दबाव डालने पर अवध का चिरकुट नबाव हालते काँपते हुए तत्समय मुगलिया सल्तनत में मीरबख्शी का पद सम्भाल रहे तथा 18 वीं सदी के रंगमंच पर मौजूद सबसे भयानक काल फेंटार ‘नजीबुद्दौला’ के पास भागकर गया तथा इन क्षेत्रों पर मुसलमानी हुकूमत कायम रहने की गुहार लगाई।

नजीबुद्दौला ने शुजाउद्दौला को इन तीनों में से एक भी हिन्दू तीर्थ-केन्द्र न देने के लिए राजी किया तथा यहीं से मराठों के विरुद्ध मुगल तथा रुहेले, अफगान, और अवध के नबाव संघबद्ध/एकताबद्ध हुए।

ज्ञानवापी मस्जिद को विध्वस्त करते हुए वहां पर पुनः काशी विश्वनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण तथा काशी के सांस्कृतिक बौद्धिक गौरव स्थापना के लिए मराठा पेशवाओं ने आजीवन प्रयत्न किया। बाजीराव से लेकर नाना फडणवीस व अहिल्याबाई के समय तक इसके लिए प्रयत्न हुए।

राजमाता अहिल्याबाई के ही पुरुषार्थ के चलते 1775 ईस्वी में 105 वर्ष बाद काशी विश्वनाथ महादेव मंदिर की पुनर्प्रतिष्ठा हो सकी और हिन्दुत्व का मूल आत्मगौरव काफी हद तक वापस आ सका।फिर भी ज्ञानवापी परिसर का अपमान तथा दारुण इतिहास आज तक ज्यों का त्यों यथावत है !

जब तक नराधम औरंगजेब के हाथों अपमानित तथा इस परिसर में मौजूद यह कलंकित मस्जिद विध्वस्त नहीं होती, हिन्दू अस्मिता बदरंग तथा दयनीय ही दिखेगी….

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