News

मीम -भीम एकता का सच : ‘मीम साथ लेते हैं पर देते नहीं’

अगर इस्लाम दलितों के लिए हितकर होता तो हिन्दू समाज में उस काल में धर्म के नाम पर प्रचलित अन्धविश्वास और अंधपरंपराओं पर तीखा प्रहार करने वाले दलित संत इस्लाम की प्रचुर प्रशंसा करते। इसके विपरीत भक्ति काल के दलित संतों जैसे रविदास, कबीरदास द्वारा इस्लाम की मान्यताओं की कटु आलोचना करते मिलते है।आज भी मुसलमानों का ‘मीम भीम एकता का नारा बहुत बड़ा धोखा है – मुस्लिमों द्वारा दलितों का उपयोग करने के बाद उनकी घोर उपेक्षा का षड्यंत्र इसमें छिपा है जिसका सबसे पीड़ादायक उदाहरण पाकिस्तान का संविधान लिखनेवाले वहां के पहले क़ानून मंत्री जोगेंद्रनाथ मंडल हैंजो अपने गुरु बाबा साहेब आंबेडकर की बात न मानकर पाकिस्तान गए और वहां से मान -सम्मान गंवा जान बचाकर किसी तरह वे भारत आए , यहीं उनकी मृत्यु हुई।

हमारे देश में मुगलों के आगमन से पहले सर पर मैला ढ़ोने की प्रथा नहीं थी। समाज की अनेक कुरीतियों के साथ -साथ यह गन्दगी भी मुसलमानों की देन है। जलील सोचवाली इस कौम की बदतमीजी का आलम ये है कि सत्ता पर कब्जा करने के लिए मुसलमान एक तरफ जहां ‘मीम -भीम एक्का’ का नारा देते हुए हिन्दुओं के लगभग 35 % वोट को अपने पक्ष में कर हिन्दू समाज को कमजोर करने में लगा हैं वहीं मौका मिलने पर उसी ‘भीम’ यानी दलित समुदाय के व्यक्ति पर अमानवीय अत्याचारों से बाज नहीं आता । चोरी के शक में मधुबनी जिले के रहिका थाना क्षेत्र में दरभंगा के दलित युवक रामप्रवेश पासवान को न केवल बुरी तरह मुसलमानों ने मारा बल्कि जब उसने पानी माँगी तो उसके मुंह में पेशाब कर दिया (https://www.patrika.com/crime-news/dalit-youth-beaten-with-sticks-gave-urine-for-drink-allegation-on-muslims-in-bihar-7733752/ )

दलितों को बरगलाकर अपने पक्ष में लगे मुस्लिम मौक़ा पाते ही उनकी जमीन -जायदाद और महिलाओं का अपहरण कर लेते हैं और उनको मारपीटकर आज भी भगा देते हैं। बिहार के पूर्णिया जिले के मझुवा गांव बायसी तहसील के तहत आता है। यहां से असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी के विधायक हैं और 75 प्रतिशत आबादी मुस्लिम है। आसपास बांग्लादेश और म्यांमार से आए लोगों का एक बड़ा हिस्सा जमीनों पर कब्जे कर रहा है और पीढ़ियों से बसे हिंदुओं को जोर जबरदस्ती से उन इलाकों से निकाला जा रहा है। इससे पहले भी इस्लामिक तत्वों द्वारा दलितों पर हमले, उनकी स्त्रियों के अपमान और घरों को आग लगाने की अनेक घटनाएं हो चुकी हैं ( (https://www.jagran.com/editorial/apnibaat-hypocrisy-of-dalit-muslim-unity-if-maha-dalits-of-purnia-became-muslims-and-they-were-tortured-would-same-silence-prevail-21687361.html )।

हिन्दू समाज में काल के प्रभाव से वंचित वर्ग में जा पहुंचे दलितों को जो मुसलमान यह कहकर भड़काते हैं कि हिन्दुओं ने उनकी अवहेलना करके सामाजिक रूप से उनके साथ भेदभाव करके उनका शोषण किया है इसलिए उनको ‘समानता और भाईचारा के मजहब’ इस्लाम की संगत करनी चाहिए , जो मुस्लिम समुदाय हिन्दू लड़कियों को बहलाकर मुस्लिम लडके से उसका निकाह के लिए हर तरह के षड्यंत्र करते हैं वे इस बात पर बिलबिला उठते हैं कि उनकी कौम की किसी लड़की ने गैर -मुसलमान से शादी की। हैदराबाद के दलित दिल्लीपुरम नागराजू की हत्या उसकी पत्नी अशरिन सुल्ताना के भाई सैय्यद मोबीन अहमद और एक रिश्तेदार मसूद अहमद ने बीच सड़क पर कर दी ( https://www.dalitdastak.com/dalit-muslim-marriage-hyderabad/ )

डॉ अम्बेडकर का इस्लाम सम्बंधित चिंतन

डॉ अम्बेडकर को इस्लाम स्वीकार करने के अनेक प्रलोभन दिए गए। स्वयं उस काल में विश्व का सबसे धनी व्यक्ति हैदराबाद का निज़ाम इस्लाम स्वीकार करने के लिए बड़ी धनराशि का प्रलोभन देने आया। मगर जातिवाद का कटु विष पीने का अनुभव कर चुके डॉ अम्बेडकर ने न ईसाई मत को स्वीकार किया और न इस्लाम मत को स्वीकार किया। क्योंकि वह जानते थे कि इस्लाम मत स्वीकार करने से दलितों का किसी भी प्रकार से हित नहीं हो सकता। अपनी पुस्तक भारत और पाकिस्तान के विभाजन में उन्होंने इस्लाम मत पर अपने विचार खुल कर प्रकट किये है ,इसीलिए उन्होंने 1947 में पाकिस्तान और बांग्लादेश में रहने वाले सभी हिन्दू दलितों को भारत आने का निमंत्रण दिया था। हिन्दू काफ़िर सम्मान के योग्य नहीं-”मुसलमानों के लिए हिन्दू काफ़िर हैं, और एक काफ़िर सम्मान के योग्य नहीं है। वह निम्न कुल में जन्मा होता है, और उसकी कोई सामाजिक स्थिति नहीं होती। इसलिए जिस देश में क़ाफिरों का शासनहो, वह मुसलमानों के लिए दार-उल-हर्ब है ऐसी सति में यह साबित करने के लिए और सबूत देने की आवश्यकता नहीं है कि मुसलमान हिन्दू सरकार के शासन को स्वीकार नहीं करेंगे।” (पृ. ३०४)

जोगेंद्रनाथ मंडल की दुर्गति से चेते नहीं हैं दलित

बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के अनन्य अनुयायी जोगेंद्रनाथ मंडल ने भारत पाकिस्तान बंटवारे के वक्त पाकिस्तान को चुना। बाबा साहब की मनाही के बावजूद तमाम दलित परिवारों के साथ वे पाकिस्तान जा बसे, पाकिस्तान का संविधान लिखा, वहां के पहले कानून मंत्री बने. पर ये पद कागजों तक ही सीमित रहा।उनका तिरस्कार होने लगा.जोगेंद्रनाथ मंडल को ये समझ आया कि वे पाकिस्तान के संविधान निर्माता और पहले कानून मंत्री जरूर हैं, पर पाकिस्तानियो के दिलों में उनके लिए कोई जगह नहीं है। धर्म व जान बचाना कठिन हो गया तो मात्र 3 साल बाद 1950 की एक रात जोगेंद्रनाथ मंडल एक इस्तीफ़ा देकर वापस भारत लौट आए।उनके खत के एक एक शब्द में धोखा मिलने की पीड़ा थी, दलितों को इस्लामिक कट्टरपंथियों से ना बचा पाने की वेदना थी और धोखा मिलने का अफसोस था। ( https://www.ichowk.in/politics/jogendra-nath-mandal-is-biggest-example-of-pakistan-religious-persecution-and-horrible-tale-of-dalit-muslim-chemistry/story/1/17064.html ) ( https://hindi.news18.com/news/knowledge/birthday-jogendra-nath-mandal-pakistan-law-minister-mrj-3437024.html ) (https://hindi.thearticle.in/hindustan/jogendra-nath-mandal-pakistan/)

Back to top button