Opinion

हलाल को लेकर रहें होशियार

इन दिनों कर्नाटक में हलाल मांस को लेकर बहस चल रही है। यह बहस भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव सी.टी. रवि के उस बयान के बाद शुरू हुई, जिसमें उन्होंने कहा है, ‘‘हलाल भोजन आर्थिक जिहाद है। हलाल वस्तुओं का प्रयोग जिहाद की तरह किया जाता है। जब वे (मुसलमान) सोचते हैं कि हलाल मांस का प्रयोग होना चाहिए, तो इसमें यह कहने में क्या गलत है कि इसका इस्तेमाल नहीं होना चाहिए?’’ उन्होंने यह भी कहा, ‘‘यदि मुसलमान गैर-हलाल मांस खाने को तैयार हैं, तो हिंदू भी हलाल मांस को खाने को तैयार हैं।’’

इसके बाद अनेक हिंदुत्वनिष्ठ संगठनों ने हिंदुओं से अपील करना शुरू किया कि हलाल मांस या हलाल प्रमाणपत्र वाली किसी भी वस्तु का सेवन न करें। बता दें कि कर्नाटक में उगादि पर्व के एक दिन बाद मांसाहारी हिंदू अपने ईष्ट देव को मांस चढ़ाते हैं और फिर नया साल मनाते हैं। इसलिए हिंदुत्वनिष्ठ संगठनों के कार्यकर्ता ऐसे हिंदुओं से अपील कर रहे हैं कि वे अपने देवताओं को हलाल मांस न चढ़ाएं, क्योंकि किसी पशु को हलाल करने से पहले कलमा पढ़ा जाता है यानी इस्लामी रीति-रिवाज से उसे मारा जाता है। इसलिए वह हिंदू देवताओं को चढ़ाने योग्य नहीं है।

हलाल का अर्थ

हलाल अरबी शब्द है। उर्दू में इसे ‘जायज’ कह सकते हैं। इस्लाम के उदय से पहले वहां रहने वाले हर मत, मजहब, कबीले की अपनी मान्यताएं और जायज-नाजायज कृत्य निर्धारित थे। कालांतर में इसी जायज-नाजायज को हलाल या हराम मान लिया गया। अब ये दोनों शब्द संघर्ष, षड्यंत्र, युद्ध, जिहाद का मूल कारण बन गए हैं। हलाल के पक्षधर इस बात पर जोर देते हैं कि कोई भी वस्तु बने, वह इस्लामी रीति-रिवाज से बने और इस्लामी दुनिया को फायदा पहुंचाने वाली हो।

इसके बाद से राज्य की राजनीति मेें उबाल आया हुआ है। मुस्लिम संगठन और सेकुलर राजनीतिक दल इसे मुसलमानों के विरोध में चलाई जाने वाली मुहिम बता रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री एच.डी. कुमारस्वामी ने कहा है, ‘‘मैं राज्य सरकार से पूछना चाहता हूं कि आप इस प्रदेश को कहां ले जाना चाहते हैं?’’

लेकिन कर्नाटक में ही ऐसे लोगों की कोई कमी नहीं है, जो यह सोचते हैं कि हलाल को लेकर हिंदू समाज को सजग होने की जरूरत है, अन्यथा यह मामला आने वाले समय में हिंदुओं को भारी पड़ेगा। बेंगलूरु में ‘धार्मिक वाइब्स’ के नाम से झटका मांस का कारोबार करने वाले सुदर्शन बोसपल्लू कहते हैं, ‘‘मुसलमान हलाल मांस के साथ-साथ हलाल आटा, हलाल घर, हलाल अस्पताल आदि की मांग करने लगे हैं। यह मुस्लिम समाज को आर्थिक रूप से लाभ दिलाने का एक तरीका है, जो देश के लिए ठीक नहीं है। कारोबार में ऐसी बात नहीं होनी चाहिए।’’

दरअसल, कई मुस्लिम संगठन करोड़ों रुपये लेकर हलाल प्रमाणपत्र जारी करते हैं और देश और दुनिया में ऐसा एक बड़ा वर्ग है, जो इस प्रमाणपत्र को देखकर ही कोई वस्तु खरीदता है। इसलिए कई कंपनियां इनसे हलाल प्रमाणपत्र लेकर अपने कई उत्पादों को बाजार में उतार रही हैं। इस कारण आज पूरे विश्व में हलाल अर्थव्यवस्था बहुत बड़ी हो गई है। ‘झटका सर्टिफिकेशन अथॉरिटी’ के चेयरमैन सरदार रविरंजन सिंह ने बताया, ‘‘इस समय पूरी दुनिया में हलाल की अर्थव्यवस्था लगभग नौ लाख करोड़ डॉलर की है। इसमें हलाल प्रमाणपत्र बांटने वाले से लेकर हलाल की वस्तुएं खरीदने वाले तक का योगदान है।’’ यानी इतनी बड़ी रकम का लाभ केवल मुसलमानों को मिल रहा है। शायद यही कारण है कि के.सी. रवि इसे आर्थिक जिहाद मानते हैं।

  • अरुण कुमार सिंह

(साौजन्य – पांचजन्य)

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