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ईरान,अरब से लेकर अमेरिका तक फैला था’हिंदू धर्म’ :कुमार गुंजन अग्रवाल

वैदिक-परम्परा है कि जहाँ कहीं भी शिव-मन्दिर हो, वहाँ जलधारा का प्रबन्ध अवश्य होगा, ताकि भक्तों को शिवलिंग पर जलाभिषेक करने में कठिनाई न हो। शिव के शीर्ष पर भी गंगा का अंकन होता है। इन्हीं सब परम्पराओं के अनुसार मक्केश्वर शिवलिंग के समीप ‘ज़मज़म’ (गंगाजलम्) नामक एक वापी (कुआँ) है। इसके जल को ‘आब-ए-ज़मज़म’ कहा जाता है।‘मुसलमानों के तीर्थ मक्काशरीफ में भी ‘मक्केश्वर’ नामक शिवलिंग का होना शिवलीला ही कहनी पड़ेगी। वहाँ के ज़मज़म नामक कुएँ में भी एक शिवलिंग है, जिसकी पूजा खजूर की पत्तियों से होती है।

राजेश झा

सुप्रसिद्ध यूरोपीय-लेखिका फै़नी पार्क्स (1794-1875) ने लिखा है : ‘हिंदुओं का दावा है कि काबा की दीवार में फँसा पवित्र मक्का के मन्दिर का काला पत्थर महादेव ही है। मुहम्मद ने वहाँ उसकी स्थापना तिरस्कारवश की तथापि अपने प्राचीन धर्म से बिछुड़कर नये-नये बनाए गए मुसलमान उस देवता के प्रति अपने श्रद्धाभाव को न छोड़ सके और कुछ बुरे शकुन भी दिखलाई देने के कारण नये धर्म के देवताओं को उस श्रद्धाभाव के प्रति आनाकानी करनी पड़ी।’ (Wanderings of a Pilgrim. in search of the Picturesque, During four and twenty years in the East; with revelations of Life in the Zenana, Vol. I, p.463)

काबा की सात उल्टी प्रदक्षिणा करते समय प्रत्येक बार इसे देखने और चूमने का विधान है (हालांकि भारी भीड़ में यह सम्भव नहीं हो पाता)। संस्कृत का ‘अजर-अश्वेत’ (अविनाशी/अमर अश्वेत/काला (पत्थर)) ही अरबी में विकसित होकर ‘हजरे अस्वद’ बन गया है- ‘अजर — ‘हजर’। फ़ारसी में इस पत्थर को ‘संगे-अस्वद’ कहा जाता है, जो ‘लिंग-अश्वेत’ का विकसित रूप प्रतीत होता है। भविष्यमहापुराण (प्रतिसर्गपर्व, 3.3.5-27) में इसी शिवलिंग का उल्लेख आया है, जिसे राजा भोज ने पंचगव्य एवं गंगाजल से स्नान कराया था— नृपश्चैव महादेवं मरुस्थलनिवासिनम्। गंगाजलैश्च संस्नाप्य पंचगव्यसमन्वितैः॥6॥

काशीनाथ शास्त्री ने उल्लेख किया है— ‘मुसलमानों के तीर्थ मक्काशरीफ में भी ‘मक्केश्वर’ नामक शिवलिंग का होना शिवलीला ही कहनी पड़ेगी। वहाँ के ज़मज़म नामक कुएँ में भी एक शिवलिंग है, जिसकी पूजा खजूर की पत्तियों से होती है।’ (कल्याण (शिवोपासनांक), जनवरी, 1993 ई., पृ. 374, प्रकाशक: गीताप्रेस, गोरखपुर) डॉ. ता.रा. उपासनी ने भी उल्लेख किया है कि मक्का में दो शिवलिंग हैं।’ (वही, पृ. 355) अजर-अश्वेत शिवलिंग का एक बड़ा और चौकोर खण्ड हैदराबाद (आंध्रप्रदेश) स्थित ‘मक्का मस्ज़िद’ में भी लगाया गया है। यह भारत की सबसे पुरानी और दूसरी सबसे बड़ी मस्ज़िद है। इसी शिवलिंग का एक हिस्सा ब्रिटिश म्यूज़ियम, लन्दन में भी सुरक्षित है।

वैदिक-परम्परा है कि जहाँ कहीं भी शिव-मन्दिर हो, वहाँ जलधारा का प्रबन्ध अवश्य होगा, ताकि भक्तों को शिवलिंग पर जलाभिषेक करने में कठिनाई न हो। शिव के शीर्ष पर भी गंगा का अंकन होता है। इन्हीं सब परम्पराओं के अनुसार मक्केश्वर शिवलिंग के समीप ‘ज़मज़म’ (गंगाजलम्) नामक एक वापी (कुआँ) है। इसके जल को ‘आब-ए-ज़मज़म’ कहा जाता है। फ़ारसी-शब्द ‘आब’ संस्कृत के ‘आप्’ से उद्भूत है, जिसका अर्थ जल होता है। राजा भोज ने इसी वापी के जल से महादेव का अभिषेक किया होगा, जिसे भविष्यमहापुराण में ‘गंगाजल’ कहा गया है— ‘गंगाजलैश्च संस्नाप्य पंचगव्य समन्वितैः।’ हज-यात्री भी इसे गंगाजल के समान पवित्र मानकर पीते हैं और इसे बोतल में भरकर अपने घरवालों, मित्रों और संबंधियों के लिए ले जाते हैं।

काबा में प्रवेश से पूर्व हज-यात्रियों को आब-ए-ज़मज़म से मुखमार्जन और पाद-प्रक्षालन के लिए कहा जाता है, जिस प्रकार भारत में हिंदू-तीर्थयात्री तीर्थ में प्रवेश से पूर्व पवित्र जलाशय में डुबकी लगाते हैं। इस्लामी परम्परा के अनुसार आब-ए-ज़मज़म से शुद्ध होनेवाला मुसलमान सभी पापों मुक्त हो जाता है, जिस प्रकार भारतीय परम्परा में गंगा में डुबकी लगानेवाला मनुष्य सभी पापों से मुक्त हो जाता है। किसी मुसलमान की मौत होने पर उसके कफ़न पर ठीक उसी प्रकार आब-ए-ज़मज़म का छींटा लगाया जाता है, जिस प्रकार किसी हिंदू का अन्त आने पर उसके मुँह में गंगाजल डाला जाता है।

पचास-साठ वर्ष पूर्व यह किंवदन्ति चर्चित रही थी कि यदि कोई हिंदू अपने साथ थोड़ा गंगाजल ले जाकर ज़मज़म वापी में डाल दे (अथवा मक्केश्वर शिवलिंग का अभिषेक कर दे) तो वह स्थान पुनः शिव-मन्दिर का रूप धारण कर लेगा। (‘जब ईरान, अरब से लेकर अमेरिका तक फैला था हिंदू धर्म’, वचनेश त्रिपाठी ‘साहित्येन्दु’, ‘राष्ट्रधर्म’, ‘विश्वव्यापी हिंदू-संस्कृति विशेषांक’, अक्टूबर, 2000, पृ. 20)

( महामना मालवीय मिशन नई दिल्ली में शोधकर्ता कुमार गुंजन अग्रवाल संस्कृत साहित्य और अंग्रेजी के उद्भट्ट विद्वान हैं। वे ‘भारतीय धरोहर , सभ्यता संवाद , अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना आदि के साथ काम कर चुके हैं।)

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