Hinduism

हिन्दू जीवन शैली एवं प्रतीकों के छलपूर्ण उपयोग से हिन्दुओं का कन्वर्जन रोबर्ट ने प्रारम्भ किया

मिशनरियों ने अपने अनुभवों से पाया कि भारतीय अपनी सांस्कृतिक मान्यताओं से भावनात्मक तौर पर इतने गहरे जुड़े हैं कि तमाम प्रयासों के बावजूद भारत में करोड़ों की संख्या में मत -परिवर्तन ( कन्वर्जन ) संभव नहीं हो पा रहा है।इस कठिनाई से पार पाने के लिए मिशनरियों ने नए हथकंडों का प्रयोग शुरू किया गया, जैसे मदर मैरी की गोद में ईसा मसीह की जगह भगवान् गणेश या श्रीकृष्ण को चित्रांकित कर ईसाइयत का प्रचार शुरू किया गया, ताकि वनवासियों को लगे कि वे तो हिंदू धर्म के ही किसी संप्रदाय की सभा में जा रहे हैं।

छल से हिन्दुओं के कन्वर्जन का काम रॉबर्ट दी नोबिली ने शुरू कराया। दक्षिण भारत में सन् १९०६ में रोबर्ट दी नोबिली का आगमन हुआ। उन्होंने देखा कि यहां पर हिन्दुओं का कन्वर्जन कराना लगभग असंभव कार्य है। उसने पाया कि हिन्दू समाज में खास तौर पर ब्राह्मणों की बड़ी प्रतिष्ठा है। ऐसे में उसने चालाकी करने की ठान ली और धोती पहन कर एक ब्राह्मण का वेश धारण कर लिया। पूरे दक्षिण भारत में यह खबर फैल गई कि वह रोम से एक ब्राह्मण आया है। ब्राह्मण वेश धारण कर नोबिली ने सत्संग करना आरम्भ कर दिया। घीरे-धीरे उन्होंने सत्संग सभाओं में ईसाई प्रार्थनाओं को शामिल करना शुरू कर दिया।

ईसाई मिशनरियों को आप भगवा वस्त्र पहनकर हरिद्वार, ऋषिकेश से लेकर तिरुपति बालाजी तक धर्म प्रचार करते पा सकते हैं। और तो और ईसा सहस्त्रनाम , ईसा चालीसा आदि का प्रकाशन कर हिन्दुओं को भटकाने का भरसक प्रयास किया जा रहा है जो कि इस देश के लिए एक खतरनाक भविष्य की ओर इशारा कर रहा है। यही हाल पंजाब में है, जहाँ बड़े पैमाने पर सिखों को ईसाई बनाया जा रहा है। पंजाब में चर्च का दावा है कि प्रदेश में ईसाइयों की संख्या 7-10 प्रतिशत हो चुकी है।


(क्रमशः)

Back to top button