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स्वामी रामकृष्ण परमहंस

रामकृष्ण परमहंस भारत के एक महान संत थे। इन्होंने सभी धर्मों की एकता पर जोर दिया। उन्हें बचपन से ही विश्वास था कि ईश्वर के दर्शन हो सकते हैं अतः ईश्वर की प्राप्ति के लिए भक्त (उपासना) का जीवन बिताया चाहिए और उन्होंने भी अपने जीवन में यही किया। साधना के फलस्वरूप वह इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि संसार के सभी धर्म के उपासना कड सच्चे हैं और उनमें कोई अंतर नहीं वे ईश्वर तक पहुँचने के साधन मात्र हैं। सभी धर्मो

रामकृष्ण परमहंस का वैराग्य और साधना

कुछ समय बाद में बड़े भाई भी चल बसे। इस घटना से वे व्यथित हुए। संसार की अनित्यता (जो सदा एक सा नहीं रहता) को देखकर उनके मन में वैराग्य और तेजी से उदय हुआ। वो बाद में श्रीरामकृष्ण मंदिर की पूजा एवं अर्चना करने लगे। दक्षिणेश्वर स्थित पंचवटी में वे ध्यानमग्न रहने लगे। ईश्वर दर्शन के लिए वे व्याकुल हो गये। जैसा की सर्व-विदित है की संसार आसक्त लोग सदा भक्त (संत) को पागल समझते है। ऐसे ही उस समय के लोग उन्हें पागल समझने लगे ।

शारदा देवी का दक्षिणेश्वर में आगमन हुआ। उन्होंने उन्हें शिक्षा दी । मधुरभाव में अवस्थान करते हुए ठाकुर ने श्रीकृष्ण का दर्शन किया। उन्होंने तोतापुरी महाराज से अद्वैत वेदान्त की ज्ञान लाभ किया और जीवन्मुक्त परमहंस की अवस्था को प्राप्त किया। सन्यास ग्रहण करने के वाद उनका नया नाम श्री रामकृष्ण परमहंस हुआ। इसके बाद उन्होंने ईस्लाम और क्रिश्चियन धर्म का भी अध्यन किया ।

रामकृष्ण परमहंस के उपदेश और वाणी

रामकृष्ण छोटी कहानियों के माध्यम से लोगों को शिक्षा देते थे। कलकत्ता के बुद्धिजीवियों पर उनके विचारों ने ज़बरदस्त प्रभाव छोड़ा था। उनके आध्यात्मिक आंदोलन ने अप्रत्यक्ष रूप से देश में राष्ट्रवाद की भावना बढ़ाने का काम किया क्योंकि उनकी शिक्षा जातिवाद एवं पक्षपात को नकारती हैं।

रामकृष्ण के अनुसार ही मनुष्य जीवन का सबसे बड़ा लक्ष्य हैं, भगवान की भक्ति की प्राप्ति व समाज सेवा । रामकृष्ण कहते थे की कामिनी कंचन ( संसार में मन का आसक्त होना) ईश्वर प्राप्ति के सबसे बड़े बाधक हैं।

रामकृष्ण संसार को माया के रूप में देखते थे। वो कहते थे, दो प्रकार की माया है, अविद्या माया और विद्या माया । अविद्या माया व्यक्ति के काले शक्तियों को दर्शाती हैं जैसे काम, , लोभ, लालच, क्रूरता, स्वार्थी कर्म आदि, यह मानव को चेतना के निचले स्तर पर रखती हैं। यह शक्तियां मनुष्य को जन्म और मृत्यु के चक्र में बंधने के लिए ज़िम्मेदार हैं। वही विद्या माया व्यक्ति की अच्छी शक्तियों के लिए ज़िम्मेदार हैं। जैसे निस्वार्थ कर्म, आध्यात्मिक गुण, उँचे आदर्श, दया, पवित्रता, प्रेम (भक्ति) यह मनुष्य को चेतन के ऊँचे स्तर पर ले जाती हैं।

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