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डिलिस्टिंग के विषय में करिया मुंडाजी का साक्षात्कार ..

• डिलिस्टिंग (delisting) के बारे में बताएं, डीलिस्टिंग की शुरुआत कैसे हुई, कहासे हुई, क्यों उपयोग करना पड़ा, क्या प्रेरणा रही शुरू करने के लिए, इसके बारे में सब विस्तार से बताएं।

  • डिलिस्टिंग ये विषय बहुत पुराना है और ये १९६७ में शुरू हुआ, और कांग्रेस की एक संसद स्वर्गीय श्री डॉ. कार्तिक उराँव जी ने संविधान पढने के बाद उनको लगाकी हमारे साथ ठीक न्याय नहीं हुआ क्यू कि संविधान में जो परिभाष दिया गया या हमें जो मंडन्द तय किया गया हे हमसे कुछ बिन्दु थे, तो हमें एक तो ऐसे जनजाती समुदाय जो अर्थिक दृष्टि से पिछडे हे, गरीब हे, अशिक्षित हे, इनकी संस्कृति बहुत पुरानी हे, जिनके सामाजिक कारोबार याने जन्मसे लेकर मरने तक जो रीति-रिवाज हे, संस्कार हे ये बाकी लोग से अलग हे। ये प्रकृति के पूजक हे। सामाजिक, आर्थिक धार्मिक, किसी भी प्रकार का कोई भी संबंध उनके बीच नहीं हे, ऐसे समुदाय को परंपरा, रूढीवादी इस तरह के जो लोग हैं उन्हें आरक्षण दिया जाये ताकी ये दूसरे के बराबर आजाए, हमें धर्म का जिक्र नहीं हे, जाति का जिक्र नहीं हे. और अभितक लोगोंका एक अनुमान जो हे ये धर्म और धर्मान्तरित लोग इन सभी को छोड़ चुके हे। चाहे वो रीति रिवाज हो, परंपरा हो, आर्थिक दृष्टिकोण से बहुत आगे हे, बहुत पढ़े लिखे हे, कोई ना कोई नौकरी करते हे सब लोग। सांस्कृतिक दृष्टिकोनसे भी और परम्परागत दृष्टिकोनसे भी ये हमलोगोस अलग हे, नाच-गान, लोकनृत्य वाद्य सब अलग हे। दूसरा और एक सबसे बड़ी बात हे, जो हमारी ये परंपरा हे, रीति रिवाज हे परंपरा हे, ये जन्म से लेके मरण तक जो क्रियाकलाब हे, उसे सब छोड़ चुके हे। तो जिन मुद्दोको लेके हमें आरक्षण मिलने की बात संविधान में लिखीत है उसके आधार पर हमें न्याय मिलना चाहिए। जैसे, जो अनुसूचित जाति के लोगों को आरक्षण देने के समय जो बातचीत हुई वह हमसे एक उनके नेता ने कहा “हम तो अछूत हैं, अब अछूत होने के खराब जो हमारी स्थिति होती हे कोई हमको छूटा नहीं हे, पिता नहीं हे, खाना खाता नहीं वह, और धर्म परिवर्तन करने के बाद, मुसलमान होने के बाद वोतो सब एक हे। मुसलमान एक जैसा, इसाई एक जैसा। उनमें ना कोई धर्म हे, ना छू-अछूत का भेद हुआ हे, ना अमीरी गरीबी का भेद हे। इसलिए हमको अलग रखिए, और जो सुविधा हमको देना हे संविधान में हो हमको अलग से दीजिए”. जो हमारा नहीं हुआ, इसलिए हम मांग करते हैं, जो आर्टिकल ३४१ में जो सुविधा अनुसूचित जाती के लोगों को दिया गया हे वही सुविधा हमलोगको भी ३४२ जो धरा हे हमें जो सुविधा का प्रावधान है वह उनको सिर्फ आदिवासी के नाम पर सुविधा दी जा रही है वह हमको मिले।

• धर्मान्तरित जनजातीय /वनवासीयो को यदि दोहरा लाभ मिलता हे, तो वो दोहरा लाभ क्या हे? कानून की भाषा में आदिवासी के रूप में लेते हैं, और क्या दूसरा लाभ अल्पसंख्यंक के रूप में लेते हैं?

  • दोहरा नहीं हे, कई लाभ हे। जैसे उनको विदेशी पैसा मिलता है। उनका विदेशी पैसे से ही उनका घर चलता है, धर्म चलता है, चर्चों का खर्चा है, उनका स्कूल चलता है, हॉस्पिटल चलता है, हां और भी कुछ क्रिया-कलाप हो वो चलता है। भारत सरकार ने पहले भी और अब भी इसे मन लिया है, इसमें एफसीआरए (विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम) का उनको लाइसेंस दिया गया है।
  • दूसरा, भारत सरकार जो उनको अल्पसंख्यंक के नाम पर लाभ और मदद करती है
  • तिसरा, आदिवासियों के नाम पर सुविधा मिल रही है। और भी वह बहुत सारे छोटे-बड़े एनजीओ बने हे उस मारफत भी सरकार जो समाज के विकास के लिए पैसा खर्च करती है वह उन्हें देती है। ऐसा काफी एनजीओ वह जो सरकारी पैसा लेकर इसाई और मुस्लिम धर्म का काम करती है।

• जिन्होंने धर्मान्तर किया हुआ हे उनको आर्थिक लाभ कैसे मिलता हे? उसकी पदानुक्रम कैसे चलती है? पैसा कहासे आता हे और किस प्रकार उन्हें लाभ मिलता हे? धर्मांतर करने के लिए लोगो को क्या प्रेरणा मिलती है? उनको कौनसी लालच दी जाति हे?

  • हा, उन्हें लालच दी जाति हे. अगर तुम धर्म बदलोगे तो हम तुम्हारे बच्चे पढ़ाएंगे लिखेंगे, जैसे तुम्हारे बच्चे हमारे लोग, तरफ ऊंचा बनेंगे, बड़े अफसर बनेंगे, नौकरी करेंगे, ऐसे सारी बातें समझते हैं। और तुम जो भूत-प्रेत मानते हो जिसे पूरा गड़बड़ होता है तो उसके लिए हमारी दावा लो और इसामसिहा का नाम लो, सब ठीक हो जाएगा। इस तरह की बातें करके गरीब-अनपढ़ वनवासियों को ईसाई धर्म परिवर्तन करा दिया जाता है। कन्वर्ट होने के बाद शुरू में इन्हें आर्थिक लाभ मिलता है, बादमे १० साल के बाद लगभग नहीं मिलता है तब तक वो परिवार खड़ा हो जाता है। कोई पढ़-लिख लेता हे, नौकरी करता हे, अगर किसी को नौकरी ना मिले तो मिशनरीज अपने संथाओ में नौकरी देदेते हे।

• क़ानूनी भाषा में देखा जाए तो जो धर्मपरिवर्तित हो गया उन्हे “आदिवासी” ये शब्द पे अर्थिक लाभ और सुविधाए मिलता है। क्या दूसरा लाभ “अल्पसंख्यांक” बनके भी मिलता है?

  • मिलता हे, अल्पसंख्यांक के नाम पे उनकी संस्था, हस्पताल, स्कूल जितने भी हे संस्था हे उन्हें अल्पसंख्यांक के नाम पर उनको भारत सरकार लम-सम राशि देते हे। जैसे अगर ये संथाये कहे की हमारा खर्चा 10 करोड़ हे तो भारत सरकार उन्हें 5-6 करोड़ देते हे।

• भारत में परिवर्तीत जनजातीयो बंधूओके लिए सूची से हटाने कि प्रक्रिया को कौन से कानुनी और नीतिगत ढाचे नियंत्रित करते है?

  • संविधान में ३४१ अनुसुचित जाति, ३४२ अनुसुचित जाति। अब ३४२ ने सबको एक कर दिया, इसाई, मुसलमान या हिंदू मानेवाले, प्रकृति पूजक, सबको मिला दिया।

• जब भी धर्मांतरण होता है तब वो अपनी पवित्रता खो देता है, तो क्या उन्हें उस चीज़ का दुख नहीं होता? क्या वो चुप रहना चाहता है और वापस से अपनी स्वदेशी और पारंपरिक प्रथा नहीं अपनाता?

  • जो लोग समज नहीं पाता वह लोग वापस नहीं आते, पर जिन्हे समज आता है कि हम गलत रास्ते पर हैं, इसाई या इस्लाम में हमारा कल्याण नहीं होनेवाला ये समज के बाद लोगोकी घरवापसी होरही हे। और उनमें रोटी बेटी का व्यवहार होता है।

• मानवाधिकार के नजरिए से डीलिस्टिंग प्रक्रिया समानता और न्याय के सिद्धांत के साथ कैसे संरेखित होती है?

  • मानवता के हिसाब से समानता तो हमारा मामला हे ना? संविधान में भी दिखाई दे सभी समानता की लड़ाई कराते हैं।

• क्या धर्मान्तरित जनजातियो बन्धुओको सुचि से हटाने में मानवाधिकारो के उल्लंघन की कोई चिंता हे?

  • मानवाधिकार के आधार पर आरक्षण नहीं मिला! भारतीय संविधान में भारतीय समाज व्यवस्था के आधार पर जो अमीरी-गरीबी का अंतर है वह जिस कारण कुछ लोग बहुत पीछे हैं वह कुछ लोग बहुत आगे बढ़ रहे हैं। तो इस अंतर को कम करने के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया है, इसमे मानवाधिकार कहा आता है?
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