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किसानो और श्रमिको के सिद्धांतवादी और निस्वार्थ नेता प्रा. एन. डी. पाटिल का निधन

पिछले सत्तर वर्षो से महाराष्ट्र के सामाजिक और राजनीतिक जीवन में सबसे आक्रामक और सक्रीय नेताओं में से एक प्राध्यापक एन.डी. पाटिल का निधन हो गया है। वह 93 वर्ष के थे। कोल्हापुर के एक निजी अस्पताल में उपचार के दौरान उन्होंने अंतिम सांस ली। स्ट्रोक के कारण पिछले चार दिनों से कोल्हापुर के एक निजी अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था।


मौसम बदलते ही स्वास्थ में दिक्कत महसूस कर रहे थे। इसलिए, एन.डी. पाटिलजी को अस्पताल में भर्ती कराया गया। कोरोना की दूसरी लहर में वे कोरोना से संक्रमित थे। लेकिन इस उम्र में भी एन. डी. पाटिल ने कोरोना को सफलतापूर्वक हरा दिया था। परन्तु इस बार, मौत के लिए उनका संघर्ष विफल रहा। उन्हें एक प्रखर नेता के रूप में जाना जाता था। उन्होंने श्रमिकों और किसानों के कई मुद्दों को लगातार उठाया था।
प्रा. एन. डी. पाटिलजी ने अपना पूरा जीवन सक्रीय आंदोलन के लिए दिया | 15 जुलाई 1929 को एन. डी. पाटिल का जन्म हुआ। उनका पूरा नाम नारायण ज्ञानदेव पाटिल है। डी. एन. जी की हमेशा से शिक्षा में रुचि रही है। एन.डी. पाटिलजी ने अर्थशास्त्र में एमए किया है। इसके बाद उन्होंने पुणे यूनिवर्सिटी से वकालत की पढाई पूर्ण की थी।


राजनितिक कार्यकाल
• 1948 : शेतकरी कामगार पक्ष (शे.का.प.) में प्रवेश
• 1957 : मुंबई गिरणी कामगार संघटन के सरचिटणीस
• 1960-66,1970-76,1976-82 ऐसे 18 वर्षं महाराष्ट्र विधान परिषद के सदस्य
• 1969- 1978, 1985 – 2010 : शे.का.प.के सरचिटणीस
• 1978-1980 : सहकारिता मंत्री ,महाराष्ट्र राज्य
• 1985-1990 : महाराष्ट्र विधानसभा सदस्य (कोल्हापूर मतदारसंघ के प्रतिनिधी )
• 1999-2002 : निमंत्रक लोकशाही आघाडी सरकार
• सदस्य महाराष्ट्र राज्य सीमा प्रश्न समिति के सदस्य और सीमा आंदोलन के प्रमुख नेता
एन. डी. पाटीलजी को मिले सन्मान /पुरस्कार
• भाई माधवराव बागल पुरस्कार : 1994
• स्वामी रामानंदतीर्थ विद्यापीठ, नांदेड : डी. लीट. पदवी, 1999
• राष्ट्रीय बियाणे महामंडळ (अध्यक्षपद ) भारत सरकार : 1998 – 2000
• डॉ.बाबासाहेब आंबेडकर मराठवाडा विद्यापीठ : डी.लीट.पदवी, 2000
• विचारवेध संमेलन ,परभणी अध्यक्षपद : 2001
• शिवाजी विद्यापीठ, कोल्हापूर : डी. लीट. पदवी
• शाहीर पुंडलिक फरांदे पुरस्कार

सीमावर्ती क्षेत्रों में मराठी भाषियों पर हो रहे अन्याय के खिलाफ लगातार आवाज उठा रहे हैं। इसके अलावा, उन्होंने लोगों के लिए कई लड़ाइयों में सक्रिय भाग लिया। सामाजिक क्षेत्र में उनके योगदान के लिए उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था।
आज मजदूर वर्ग में आस्था रखने वाले और जनहित के लिए प्रतिबद्ध महाराष्ट्र के सिद्धांतवादी और निस्वार्थ नेता खो गए हैं।

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