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प्राचीन भारत के विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक:- भाग 2

विशेष माहिती श्रृंखला – (2-7)

मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, कालीबंगा, लोथल आदि स्थानों के पुरातात्विक उत्खनन इसकी गवाही देते हैं कि ज्ञान-विज्ञान की दृष्टि से सिंधु घाटी की सभ्यता अत्यन्त विकसित सभ्यता थी। यहां लोग सुनियोजित नगरों में रहते थे। उनके भवन, सड़कें, नालियां, स्नानागार, कोठार (अन्न भंडार) आदि पक्की ईंटों से बने थे।

लोग जहाजों द्वारा विदेश से व्यापार करते थे। खुदाई में मिले माप-तौल के बाट, कृषि व खनन के उपकरण और पहिया गाड़ी के अवशेष सिंधु निवासियों के गणित के जानकार होने, उन्नत कृषि तथा खनन विद्या में पारंगत होने की गवाही देते हैं। उनके पास कठोर रत्नों को काटने, गढ़ने, छेद करने के लिए उन्नत कोटि के उपकरण थे। वे सोना, चांदी, बहुमूल्य रत्नों के आभूषण, कांसे के हथियार, औजार और ऊनी-सूती वस्त्र निर्माण की कला भी जानते थे।

भारतीयों ने मिश्र धातु बनाने की विधि 3,000 वर्ष पूर्व ही विकसित कर ली थी। भारतीय इस्पात की श्रेष्ठता का अंदाजा इसी से लगाया सकता है कि प्राचीन काल में तलवारों का निर्यात अरब एवं फारस तक होता था। दिल्ली में महरौली स्थित 1600 साल पुराना लौह स्तंभ आज भी बिना जंग लगे मजबूती से खड़ा है। 5वीं सदी में वराह मिहिर रचित ‘बृहत् संहिता’ तथा 11वीं सदी में राजा भोज रचित ‘युक्ति कल्पतरु’ में जहाज निर्माण पर प्रकाश डालते हुए कहा गया है कि जहाज के निर्माण में लोहे का प्रयोग न किया जाए, क्योंकि समुद्री चट्टानों में कहीं चुम्बकीय शक्ति हो सकती है। प्राचीन काल में भारतीयों का खगोल ज्ञान भी उन्नत था। वे 27 नक्षत्रों के साथ वर्ष, माह व दिवस के रूप में काल गणना से भी पूर्ण परिचित थे।

वैदिक साहित्य, खासकर अथर्ववेद में रोगों के नाम व आयुर्वेद से जुड़े साहित्य में रोगों के लक्षण ही नहीं, मनुष्य के शरीर की हड्डियों की पूरी संख्या तक दी गई है। बौद्ध काल में आयुर्वेद चिकित्सा का बहुत विकास हुआ। अशोक के शिलालेखों में पशु व मनुष्य चिकित्सा तथा मनुष्यों व पशुओं के उपयोग की औषधियों का उल्लेख मिलता है। चीन, तुर्किस्तान से मिले 350 ई. के भोजपत्र पर लिखे संस्कृत ग्रंथ में से तीन आयुर्वेद संबंधी हैं। ‘इंडियन विजडम’ में पाश्चात्य विद्वान विलियम इंटर लिखते हैं कि भारतीय औषधि शास्त्र में शरीर की बनावट, भीतरी अवयवों, मांसपेशियों, पुट्ठों, धमनियों और नाड़ि

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