CultureHinduism

स्वामी विवेकानंद तुम्हारे भी हैं लेफ्ट लिबरलों, बस अपने हाथों पर लगी कालिख धो लो!

आज स्वामी विवेकानंद जयंती पर सुबह सुबह अपने एक मित्र का संदेश व्हॉट्सऐप पर देखा. बडी खुशी हुई. क्योंकि तथाकथित लिबरल और सेकुलर गैंग से पूरी सहानुभूति रखता है. तथा भारतीय और हिंदू विचारधारा को कट्टरवाद बताने में कभी नहीं झिझकता. लोग उसकी बातों को बडे गौर से पढते और सुनते भी हैं क्योंकि वह एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में उच्चपद पर प्रतिष्ठित प्रोफेसर भी है.

किंतु मेरे लिए ये सुखद आश्चर्य रहा कि उसने ११ सितंबर १८९३ के उस भाषण को कम से कम पूरा पढ तो सही. जिसने पूरे विश्व में हिंदू धर्म की विजय पताका लहराई थी, परतंत्रता की बेड़ियों में जकडी भारत माता और पराधीन भारतीय मानस के उस काल में स्वामी विवेकानंद जी का शिकागों में दिया गया वह भाषण अत्यंत लोकप्रिय हुआ और इसके बाद वे एक के बाद एक सैकडों प्रवचनों से ४ वर्ष तक अमरीकी जनमानस को उद्वेलित करते रहे. मेरे उस विद्वान मित्र ने मैसेज में स्वामी जी के उसी ऐतिहासिक भाषण को यथावत प्रस्तुत करते हुए पहले प्रस्तावना में लिखा है कि “स्वामी विवेकानंद की जयंती पर सादर नमन। विवेकानंद पर अपना एकाधिकार मानने वाले काश उस चर्चित भाषण के सार को स्वीकार कर पाते।”

ये बदलाव ही सुखद आश्चर्य से भरा है क्योंकि कई वर्षों से हम व्हॉट्सऐप ग्रुप में हैं लेकिन २०२१ की १२ जनवरी से पहले मैने कभी उसे विवेकानंद जयंती की शुभकामनाएं देते नहीं देखा और नहीं पढा है. चूंकि मैं संघ कार्यकर्ता हूं तो लेफ्ट लिबरल लॉबी से सहानुभूति रखनेवाले और संघ से घोर ईर्ष्या करना वामपंथी विचारधारा के समर्थकों का जन्मसिद्ध अधिकार है. उसने स्वामीजी के भाषण का वह अंश बोल्ड किया है जिसमें स्वामीजी कहते हैं -“सांप्रदायिकता, हठधर्मिता और उनकी वीभत्स वंशधर धर्मांधता इस सुंदर पृथ्वी पर बहुत समय तक राज्य कर चुकी है। वे पृथ्वी को हिंसा से भरती रही हैं व उसको बारंबार मानवता के रक्त से नहलाती रही हैं, सभ्यताओं को ध्वस्त करती हुई पूरे के पूरे देशों को निराशा के गर्त में डालती रही हैं…..”

ऐसे लेफ्ट लिबरल वामियों को ध्यान देना चाहिए कि उस समय न तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ था और न ही वि.हिं.प.. स्वामीजी किन विचारधाराओं के बारे में ये बातें कह रहे हैं, इसका अंदाज़ा हम सहजता से लगा सकते हैं. आज रामजन्म भूमि तीर्थक्षेत्र में राम मंदिर का आरंभ होने को है. कौन सी हठधर्मिता और विभत्स वंशधर धर्मांधता थी जिसने भगवान श्रीराम के मंदिर को तोडने में गर्व का अनुभव किया! कौन सी वह विचारधारा थी जिसने काशी विश्वनाथ में बैठे उस नंदी को ज्ञानवापी मस्जिद की दिशा में मुंह ताकने पर मजबूर कर दिया! कौन सी विचारधारा थी जिसने कृष्ण से उनकी जन्मभूमि से बेदखल करने का दुस्साहस किया!

वह विचारधारा कौन सी है जो आज मिजोरम, मेघालय जैसे पूर्वात्तर के राज्यों में मूल निवासियों को उनके धर्म से दूर कर अपने तथाकथित रिलीजन ऑफ पीस में लाकर अपनी जनसंख्या को बढ़ा रही है! ऐसे वामी और लेफ्ट लिबरल कभी भी गोवा में आज भी हजारों हिंदुओं की कत्ल का गवाह बने उस `हात कापरो खांब` का उल्लेख नहीं करेंगे जिस पर हिंदुओं के हाथों को तब तक बांधकर मरोडा जाता, जब तक कि वह जीसस की शरण में आने को तैयार न हो जाता!

और इस तरह की कट्टरता से मुख मोडनेवाले वामी और सेकुलर गैंग के लोग केरल में होनेवाली राजनीतिक हिंसाओं से अनभिज्ञ रहते हैं. बंगाल में चल रहा खूनी तांडव उन्हें नहीं दिखाई देता. सांसद कल्याण बैनर्जी द्वारा भगवान राम और मां सीता को कहे गए अपमानजनक शब्दों का कभी उन्होंने विरोध नहीं किया. न ही कभी राम के अस्तित्व पर सवालिया निशान लगानेवाली रोमन कांग्रेस की साम्राज्ञी से कभी पूछा कि राम पर सवाल उठानेवाली तुम कौन हो?

ये बात समझ से परे है कि कब किसी हिंदू विचारधारा ने विश्व में कहीं हिंसा की है, कहां किसी के पूजा स्थल को तोडा है और कहां किसी की बहन बेटियों को छद्म नाम धारण कर उनका हरण किया है? दरअसल ये लोग अब धीरे धीरे जागृत हो रहे हिंदू जनमानस को समझ रहे हैं. समझ भी न रहे हों तो भी उन्हें किंचित आभास तो होने ही लगा है. शायद अपने सेकुलर आकाओं, अपने संस्थानों और कार्यालयों में बैठे लिबरल ठेकेदारों के नाराज होने का भय उन्हें सता रहा हो. किंतु एक बात तो तय है कि जिस धर्म की बात स्वामी विवेकानंदजी करते हैं उसे खुलकर मानने के लिए आत्मा का उद्घाटन होना आवश्यक है और तब कहीं जाकर वे स्वामीजी की यही बात गर्व से बोल सकेंगे कि- “मैं ऐसे धर्म का अनुयायी होने में गर्व का अनुभव करता हूँ जिसने संसार को सहिष्णुता तथा सार्वभौम स्वीकृत- दोनों की ही शिक्षा दी है. हम लोग सब धर्मों के प्रति केवल सहिष्णुता में ही विश्वास नहीं करते वरन समस्त धर्मों को सच्चा मानकर स्वीकार करते हैं. मुझे ऐसे देश का व्यक्ति होने का अभिमान है जिसने पृथ्वी के समस्त धर्मों और देशों के उत्पीडितों और शरणार्थियों को आश्रय दिया है. मुझे आपको यह बतलाते हुए गर्व होता है कि हमने अपने वक्ष में उन यहूदियों के विशुद्धतम अवशिष्ट को स्थान दिया था जिन्होंने दक्षिण भारत में आकर उसी वर्ष शरण ली थी जिस वर्ष उनका पवित्र मंदिर रोमन जाति के अत्याचार से धूल में मिला  दिया गया था. मैं ऐसे धर्म का अनुयायी होने पर गर्व का अनुभव करता हूँ जिसने महान जरथुष्ट जाति के अवशिष्ट अंश को शरण दी और जिसका पालन वह अब तक कर रहा है.”

और हां, अंत में एक बात- स्वामी विवेकानंद पर किसी एक का एकाधिकार कभी नहीं रहा और न होगा, स्वामीजी सबके हैं, लेकिन अब जब वे अपने से लगने लगे हैं धीरे धीरे तो लेफ्ट लिबरल, सेकुलर गैंग एकाधिकार की बात करके इस तरह से छले जाने का नाटक कर रहा है मानो उन्हें किसी ने विवेकानंद का नाम लेने से रोका हो इन सौ सालों में. काश स्वामीजी की प्रतिमा पर अपने विश्वविद्यालयों में कालिख मलनेवाली विचारधारा स्वामीजी के विचारों और हिंदुत्व के अधिष्ठान को समझ पाती!

– सत्यप्रकाश मिश्र

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button