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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पंजाब और पंजाबियत को महत्व देता है

रा.स्व.संघ का पंजाब से अटूट संबंध है

वर्ष १९६० में पंजाब की यात्रा पर आए रा.स्व.संघ के तत्कालीन सरसंघचालक गुरूजी माधवराव सदाशिव गोलवलकर जी ने जालंधर में कहा था कि पंजाब में रहने वाले सभी लोगों की भाषा पंजाबी है। ऐसा कहते हुए वे पंजाबियत के मूल को रेखांकित कर रहे थे जिसे रा.स्व. संघ ने हमेशा सर्वोच्च माना है। गुरूजी का यह वक्तव्य तब आया था जब पंजाब में भी ‘ हिंदी बचाओ आंदोलन’ चल रहा था और आर्य प्रतिनिधि सभा १९५६ से ही पंजाब में रह रहे हिंदीभाषियों यह समझाने में लगी थी कि १९६१ की जनगणना में वे लिखित रूप में कह सकें कि उनकी भाषा हिंदी है, न कि पंजाबी।


ऐसा नहीं है कि रा.स्व.संघ ने पहली बार पंजाब और पंजाबियत के लिए पहल की है। १९४७ में सीमा पार से आए पंजाबियों और हिंदुओं के लिए संघ ने बहुत रचनात्मक भूमिका ली थी। संघ ने शरणार्थियों को न केवल पर्याप्त सुरक्षा प्रदान की थी बल्कि उनके रहने, भोजन आदि की सुव्यवस्था भी की थी।
१९३७में सांप्रदायिक हिंसा के दौरान डॉ हेडगेवार ने अपने तीन प्रचारकों श्री के .डी .जोशी, श्री दिगंबर पाटुरकर ( राजा भाऊ) और मोरेश्वर मुंजे को पंजाब भेजा था। १९३८ में लाहौर मे लगी संघ की पहली शाखा में डॉ हेडगेवार एवं गुरुजी भी उपस्थित हुए थे। १९४७ आते – आते पंजाब में संघ काफी प्रभाव बन चुका था। उसके ८४००० स्वयंसेवक १२०० जगहों पर शाखाएँ लगाते थे।
देश का विभाजन होने पर संघ के स्वयंसेवकों ने शरणार्थियों के लिए न केवल सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किये बल्कि भोजन वस्त्र आदि का उत्तम प्रबंध भी किया था। संघ ने तब केवल पंजाब में २००० शरणार्थी शिविर चलाए थे। उस समय संघ अकेला संगठन था जो मुस्लिम नैशनल गार्ड और मुस्लिम लीग से लोहा ले रहा था जबकि कांग्रेस दबाब में आकर दुबकी हुई थी।

पंजाब राज्य का गठन होते पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने सुनिश्चित किया कि पंजाबी ही नहीं बल्कि हिंदू भी अपनी मातृभाषा पंजाबी ही दर्ज करायें। पंजाबी को सरकारी मान्यता में सहायता के पीछे यह मान्यता थी कि दोनों की संस्कृति एक ही है। इसलिए गुरुजी ने हस्तक्षेप करके हिंदुओं को कहा था कि पंजाबियत और पंजाब के पक्ष में खड़े रहें।यह अपने आप में एक बड़ी ऐतिहासिक घटना है। खुरेंजी आतंक के दिनों में भी संघ ने पंजाब में सांप्रदायिक सदभाव एवं सौहार्द्र बनाये रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

पंजाब में, जब आतंकवाद अपने प्रारंभिक दौर में था तथा आतंकवादी लगातार हिंदुओं की हत्याएँ कर रहे थे तब संघ के वरिष्ठ नेताओं ने तय किया कि साम्प्रदायिक हिंसा नहीं भड़के। कुछ हिंदू संगठन हिंसा का उत्तर प्रतिहिंसा से देना चाहते थे लेकिन संघ ने उनको रोका।
संघ के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं ने पीड़ित हिंदुओं के घरों में जाकर लोगों का हौंसला बढ़ाया और कहा कि वे हिंसा से घबराकर पलायन नहीं करें। जगह – जगह पर ‘पंचनाद’ कार्यक्रम करके संघ के स्वयंसेवकों ने लोगों के बीच संवाद बढ़ाये।


१९८९ में जब मोगा में आतंकवादियों ने राष्ट्रीय। स्वयंसेवक संघ के २५ कार्यकर्ताओं की हत्या कर दी और ३५ को बुरी तरह गोलियों से छलनी कर दिया तो प्रसिद्ध लेखक खुशवंत सिंह ने खिन्न होकर कहा था कि १९८४ में दिल्ली के सिख विरोधी दंगे में संघ के लोगों ने ही सिखों की रक्षा की थी इसके बाद भी खालिस्तानियों ने संघ के कार्यकर्ताओं पर गोलियाँ चलायीं! पर मोगा नरसंहार के बाद भी खालिस्तानी आतंकियों ने कई बार संघ के कार्यकर्ताओं पर हमले किये।

आज भी संघ के स्वयंसेवक पंजाब में ‘ड्रग्स से मुक्ति’ और ऑर्गेनिक फार्मिंग के क्षेत्र में, काफी काम कर रहे हैं जो कि पंजाब की पहली आवश्यकता है। संघ की जडें पंजाब में, बहुत गहरी हैं इसलिए संघ के बारे में अनर्गल प्रलाप करने से पहले पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने सुनिश्चित किया कि विधानमंडल में संघ पृष्ठभूमि या संघ का कोई व्यक्ति उत्तर देने के लिए उपस्थित तो नहीं है।

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