Science and Technology

प्राचीन भारत के विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक:- भाग 4

विशेष माहिती श्रृंखला – (4-7)

2]परमाणु सिद्धांत के जनक आचार्य कणाद:

इसी तरह, परमाणु बम का आविष्कारक जे. रॉबर्ट ओपनहाइमर. तथा अणु सिद्धांत का जनक जॉन डाल्टन को माना जाता है। लेकिन महर्षि कणाद ने डाल्टन से लगभग 2400 वर्ष पूर्व ही पदार्थ की रचना संबंधी सिद्धांत को उजागर कर दिया था। सर्वप्रथम कणाद ने ही परमाणु को पदार्थ की लघुतम अविभाज्य इकाई के रूप स्थापित किया। ‘वैशेषिक दर्शन सूत्र’ के 10वें अध्याय में पदार्थ के सूक्ष्मतम कण की व्याख्या करते हुए कणाद लिखते हैं,

‘दृष्टानां दृष्ट प्रयोजनानां दृष्टाभावे प्रयोगोऽभ्युदयाय’

-अर्थात् प्रत्यक्ष देखे हुए और अन्य को दिखाने के उद्देश्य से या स्वयं और अधिक गहराई से ज्ञान प्राप्त करने हेतु रखकर किए गए प्रयोगों से अभ्युदय का मार्ग प्रशस्त होता है।

उनके ग्रंथ ‘वैशेषिक सूत्र‘ में परमाणुओं को सतत गतिशील बताया गया है तथा द्रव्य के संरक्षण की भी बात कही गई है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया है कि परमाणु कभी स्वतंत्र नहीं रह सकते तथा एक प्रकार के दो परमाणु संयुक्त होकर ‘द्विणुक’ का निर्माण भी कर सकते हैं और अलग-अलग पदार्थों के परमाणु आपस में संयुक्त भी हो सकते हैं। ‘इंडियन विजडम’ के पृष्ठ 155 पर विख्यात यूरोपीय इतिहासकार टीएन कोलबुर्क ने लिखा है कि ईसा पूर्व 600 में एक भारतीय मनीषी कणाद मुनि द्वारा प्रस्तुत परमाणु संबंधी प्रतिपादन आश्चर्यजनक रूप से जॉन डाल्टन की संकल्पना से मेल खाता है। अतः यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं कि कणाद के लिखे वैदिक सूत्रों के आधार पर ही कालांतर में डाल्टन ने परमाणु सिद्धांत का प्रतिपादन किया।

3]अलकेमिस्ट आचार्य नागार्जुन:

प्राचीन भारत के महान रसायन शास्त्री आचार्य नागार्जुन के बारे में बिनॉय कुमार सरकार की पुस्तक ‘हिंदू एचीवमेंट इन एक्जैक्ट साइंसेज’ में बताया गया है कि नागार्जुन ने पारे के गुण-धर्म पर 12 वर्ष तक गहन शोध करने के बाद पारे से सोना बनाने का सूत्र विकसित किया था।

उन्होंने कच्चे जस्ते से शुद्ध जस्त प्राप्त करने की आसवन की विधि ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में ही विकसित कर ली थी जिसके उपकरण व प्रमाण राजस्थान के जवर क्षेत्र की खुदाई के दौरान मिले थे। सोना, चांदी, लोहा, तांबा, सीसा, टीन एवं कांसा आदि धातुओं से बर्तन बनाने तथा स्वर्ण, रजत, ताम्र, लौह, अभ्रक व पारा आदि से औषधि भस्म बनाने की विधि का वर्णन आचार्य नागार्जुन के ‘रस रत्नाकर’ व ‘रसेंद्र मंगल’ ग्रंथ में मिलता है। उन्होंने ‘रस रत्नाकर’ में धातु परिष्करण की आसवन, भंजन आदि विधियों का विस्तार से वर्णन किया है। इसमें बताया गया है कि उन्होंने चिकित्सकीय सूझ-बूझ से कुष्ठ जैसे कई असाध्य रोगों की औषधियां भी तैयार की थी।

Back to top button