OpinionScience and Technology

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र मे भारत का योगदान:भाग १

विशेष माहिती श्रृंखला : भाग १ (1-30)

ऐतिहासिक दृष्टि से, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत का विशेष योगदान रहा है शून्य तथा अंकों व उनके स्थानीय मान की खोज, दिल्ली लौह-स्तंभ एवं देवालयों की उत्कृष्ट शिल्पकला आदि विभिन्न कालों की भारतीय प्रतिभाओं के अविस्मरणीय उदाहरण हैं। विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विभिन्न क्षेत्रों में प्राचीन भारत की उपलब्धियों की वस्तुपरक जानकारी का प्रचार न केवल हमारे लिए राष्ट्रीय गौरव का विषय है बल्कि हमारे समाज में वैज्ञानिक संस्कृति को समाहित करने का प्रेरणा स्रोत भी है । हमारा दृढ़ विश्वास हो कि प्राचीन भारतीय साहित्य में विज्ञान व प्रौद्योगिकी से संबंधित ज्ञान का उल्लेख मात्र ही पर्याप्त नहीं है, इसका आधुनिक विज्ञान के कड़े मापदंडों पर खरा उतरना भी अनिवार्य है ।

*प्राचीन भारत में कृषी-विज्ञान:

भोजन, जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं में से एक है। प्रारंभ से ही भोजन की प्राप्ति, मनुष्य की एक मुख्य गतिविधि है। अतः यह आश्चर्य की बात नहीं है कि कृषि प्रत्येक सभ्यता का अभिन्न अंग रही है। प्राचीन साहित्य में उपलब्ध तथ्यों से स्पष्ट है कि वैदिक काल में भारत में मनुष्यों तथा पालतू पशुओं के लिये खाद्य पदार्थ उत्पन्न करने तथा उनका भंडारण करने हेतु कृषि का विज्ञान के रूप में विकास हुआ।

प्राचीनकाल में कृषि एक बहुआयामी गतिविधि थी जिसमें अनाज तथा दालों का उत्पादन, वानिकी, चिकित्सीय एवं सजावटी पौधे, पशु-पालन तथा अन्य संबंधित पहलू शामिल थे। इस प्रगति की जानकारी हमें पुरातात्विक खोज तथा पराशर व सुरपाल जैसे विद्वान वैज्ञानिकों द्वारा कृषि पर लिखे गये ग्रंथों से मिलती है। यह ग्रंथ एक साधारण किसान के लिए उसकी ज़मीन के इष्टतम उपयोग में सहायक हे। सातवाहन, मगध,राष्ट्रकूट तथा विजयनगर के राजाओं ने उपज बढ़ाने तथा उत्कृष्ट खाद्यात्र पैदा करने के लिये कई योजनाओं का कार्यान्वयन किया था।

इस प्रकरण में प्राचीन भारतीय कृषि के इतिहास तथा उसके मुख्य पहलुओं की झलक प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। किसानों द्वारा अपनायी गयी कुछ सामान्य विधियों का आधुनिक वैज्ञानिक जानकारी के आधार पर विश्लेषण किया गया है। वर्षा के मापन तथा उसकी भविष्यवाणी के तरीकों सहित, कृषि पंचांग आदि के बारे में भी जानकारी दी गई है इन ग्रंथों में उपलब्ध विशाल जानकारी का संकेत देने के लिये कुछ मुख्य विषयों का संक्षिप्त वर्णन किया गया है।

यह बात ध्यान देने योग्य है कि बीज-स्वास्थ्य प्रबंधन तथा पौधों की बीमारियों को काफी महत्व दिया जाता था। विभिन्न फसले उत्पन्न करने के लिये एक समुचित समय सारिणी तैयार की गयी थी। सिंचाई को काफी प्रमुखता दी जाती थी। फसलों और पशुओं के लिये कुछ पादप संसूचक तथा कुंए खोदने के लिये भूमिजल-संसूचकों के बारे में जानकारी दे कर इन विद्वानों ने साधारण किसान का काम काफी सरल बना दिया था।

सुरपाल द्वारा वर्णित कुछ बागवानी संबंधित आश्चयों को भी इस प्रकरण में सम्मिलित किया गया है आज के संदर्भ में यह बात काफी आश्चर्यजनक लगती है कि उस समय भी पौधों से उनकी बेहतर पैदावर करने पर काफी ध्यान दिया जाता था।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button