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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र मे भारत का योगदान: भाग 30

विशेष माहिती श्रृंखला : भाग 30 (30-30)

समारोप

विज्ञान व प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में वास्तुकला, कृषि, खगोलविज्ञान, रासायनिकी, गणित, आयुर्विज्ञान, धातुकी, भौतिकी तथा कुछ अन्य क्षेत्रों में प्राचीन भारत के योगदान की चर्चा की गयी है जिस पर हमें ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व को गर्व होना चाहिये। साथ ही हम मिश्र, ईरान, ग्रीक, एवं अन्य सभ्यताओं की वैज्ञानिक एवं तकनीकी धरोहर को भी खुले दिल से स्वीकार करते हैं। विश्व नागरिक होने के नाते, हमें उनकी उपलब्धियों पर गर्व है।

विभिन्न सभ्यताओं के आपस में निकट आने के कारण विभिन्न देशों के बीच ज्ञान एवं विचारों का आदान-प्रदान हुआ । गणित व खगोलशास्त्र के कई सिद्धांत, अरबों के माध्यम से पश्चिमी देशों ने हमसे सीखे। इसी प्रकार ग्रीस के लोगों से हमने चिकित्सा क्षेत्र में यूनानी पद्धति की जानकारी प्राप्त की।यद्यपि हमें प्राचीन भारत की विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पर गर्व होना चाहिये परन्तु हमें उन्हीं उपलब्धियों पर नहीं रुक जाना चाहिये।आधुनिक विश्व में भी हमें उसी प्रकार या उससे भी बेहतर प्रदर्शन करने का प्रयत्न करना है।

हमें यह नहीं भूलना चाहिये कि मध्य युग में हम इस दौड़ में कहीं पिछड़ गये थे और इसीलिये हम पर ‘विकासशील देश का ठप्पा लग गया। इतिहास के इस महत्वपूर्ण तथ्य से हमें शिक्षा लेनी है। हमें सावधान रहना है कि हम उस गलती को दोहराये नहीं। उन्नीसवीं और बीसवीं सदी में हमने आधुनिक विज्ञान के युग में कदम रखा। इस युग में भी कई भारतीयों ने विज्ञान व तकनीकी में उत्कृष्ट योगदान दिया । जगदीशचंद्र बोस, पी.सी. रे. सी.वी. रमण. एम. विश्वेश्वरया, मेघनाद साहा, सत्येंद्रनाथ बोस एवं कईअन्य वैज्ञानिकों ने भारत का नाम रोशन किया। आधुनिक विज्ञान व प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उत्कृष्टता प्राप्त करके नये मानदंड स्थापित करना ही प्राचीन वैज्ञानिकों के प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

विश्व ने विज्ञान के विनाशकारी पहलू भी देखे हैं। आज यह अनुभव किया जा रहा है कि विज्ञान मानवजाति व प्रकृति के लिये एक चुनौती बन चुका है। वेदों में स्थापित विश्व बंधुत्व की भावना ही मनुष्य को अपने इस ज्ञान को संपूर्ण मानवजाति, पर्यावरण एवं प्रकृति के विरुद्ध प्रयोग करने से रोक सकती है। इसी के माध्यम से हमारा सर्वे भवन्तु सुखिनः का सपना साकार हो सकता है.

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