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सामाजिक और सामूहिक संकल्प से दूर होगी ‘नशावृत्ति’;

बीड़ी-सिगरेट से शुरू होने वाली नशे की लत युवाओं को गांजे, शराब और ड्रग्स की दलदल में धकेल देती है। अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की कथित आत्महत्या के मामले में ड्रग्स की बात भी कही गयी थी। अभिनेत्री रिया चक्रवर्ती और उनके भाई शौविक चक्रवर्ती के बीच ड्रग्स को लेकर हुई व्हॉट्सऐप चैट भी वायरल हुई थी। इसके बाद से युवाओं में बढ़ती नशावृत्ति पर एक बार फिर चर्चा का विषय बनीं।

आज के वैज्ञानिक युग में नशे का व्यापार शहरी क्षेत्रों से निकलकर गांवों में अपनी पकड़ बना रहा है। नशावृत्ति के कारण ही आज समाज में अनैतिकता, उच्छृंखलता, अव्यवस्था, अशिष्टता, व्यभिचार का बोलबाला है।इसके साथ-साथ यह भी उतना ही सच है कि समाज पर जितना बुरा असर नशावृत्ति से हो रहा है, उतना कुप्रभाव शायद ही किसी दूसरी चीज का हो रहा है। आज जितनी भी बुराइयां वर्तमान समाज में बढ़ती जा रही हैं, उनकी बहुत हद तक जिम्मेदारी नशावृत्ति ही है। पाश्चात्य जगत तो यह समझता है कि नशावृत्ति केवल मनोरंजन एवं तरोताजगी का एक साधन मात्र है, वे भ्रम में हैं। विदेशी दुष्प्रचार के कारण आज भारत के सभी प्रांतों में नशे का कारोबार फल-फूल रहा है। जिसका दुष्प्रभाव हमारे देश के सुकुमार बालकों एवं तरुणों पर गहराई से पड़ रहा हो, उसे केवल मनोरंजन एवं दिल बहलाव का साधन मात्र समझना भूल होगी।

अनुभव तो यह बताता है कि अच्छी शिक्षा तथा शुभसंस्कार माता-पिता अपने पुत्र पर या शिक्षक अपने छात्र पर नहीं डाल सकते, पर नशे की रंग-बिरंगी विलासी दुनिया उन बालकों पर अनैतिकता के संस्कार शीघ्र और स्थाई रूप से डाल देती है। हमें ऐसी कुत्सित वृत्ति का पूर्ण बहिष्कार कर देना चाहिए, जिसमें अनैतिकता और वासना को उद्दीप्त करने के अवगुण रहते हैं। आज क्या बालक, क्या युवक और क्या बूढ़े, सभी नशे के शौकीन हो रहे हैं। महानगरीय विद्यार्थियों पर तो इसका रंग खूब चढ़ा हुआ है। उन्होंने तो नशे के उत्पादों का विज्ञापन करने वाले अभिनेताओं के चित्रों से अपने घरों को सजा रखा है।

पहले तो लोग अपने घरों को सजाने के लिए देवताओं के चित्र लगाते थे, परंतु आज उनकी जगह बैठक कक्ष में छोटे बार बना रखे हैं, जिसकी शोभा महंगी शराब की बोतलें बढ़ा रही हों, इसका चलन बढ़ रहा है। चलन बढ़े भी क्यों ना, जब हर चौराहे पर शराब की दुकानें युवाओं को आकर्षित कर रही हों, तो ऐसे नशावृत्ति का बढ़ना स्वाभाविक भी है। चिंता उन युवक-युवतियों की ही नहीं बल्कि, उन माता-पिताओं की नासमझी की भी है, जो छोटे-छोटे कोमल मति, अबोध बालक-बालिकाओं के सामने घर पर नशा करते हैं। अभिभावकों की इसी नासमझी के कारण हो बालक- बालिकाओं में नशे के प्रति स्वाभाविक रूचि उत्पन्न होती है और आगे चलकर यह वृत्ति बन जाती है।हम सत्य से मुंह नहीं छिपा सकते कि वर्तमान समय में भौतिकवादी सभ्यता ने विश्व और भारत में अनेकानेक समस्याओं को जन्म दिया है। फिर भी समाज में रहकर उचित कार्यों को करना, बुरे कार्यों का त्याग करना मानव का वास्तविक धर्म कहलाता है। धर्म को जानने वालों के लिए वेदों को परम प्रमाण के रूप में स्वीकार किया है। ‘धर्मजिज्ञासमानानां प्रमाणं परमं श्रुतिः।

वैश्विक समाज में नशावृत्ति विभिन्न रूपों में विद्यमान है और यह सभी स्तरों को प्रभावित भी कर रही है। नशावृत्ति की बदलती, बढ़ती प्रवृत्ति भारत के लिए एक गंभीर समस्या का रूप धारण करती चली जा रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़े बताते हैं कि दुनिया भर में 25 लाख लोग प्रति वर्ष अल्कोहल के कारण मरते हैं। इसमें 10 प्रतिशत लोग अकेले भारत में हैं। वहाँ गुटखा, गांजा, भांग, चरस, टिंचर जिंजर के सेवन से भारत में हर वर्ष 5 लाख से अधिक लोग काल के गाल में समा जाते हैं। आज का युवा वर्ग रासायनिक तत्वों के सेवन को अच्छा मान रहा है। तुरंत नशे का सुख प्राप्त करने वाली यह प्रवृत्ति अत्याधिक पातक है।

भारत में प्रति लाख आबादी पर 40 प्रतिशत पुरूष लीवर सिरोसिस से मरते हैं। शराब, कोकिन, हेरोइन, एलएसडी, मारिजुआना, स्टेरायड्स, मेथमफेटामाइन, टीसीपी, रोहपनॉल, एक्सटेसी, रासायनिक दवाएं, निकोटिन प्रमुख हैं। इन नशीले पदार्थों के लंबे समय तक सेवन करने से दिमाग के काम करने की क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। धूम्रपान, मदिरापान, क्लब, विलासिता के लिए विवाह आदि समारोह में काकटेल पार्टियां आदि दुर्व्यसन आज संस्कृति का रूप ले रही है। देश में प्रति वर्ष सिगरेट की लगभग 15.215 करोड़ की बिक्री हो रही है।

मदिरा का बाजार भी 10,822 करोड़ का है। नशे के इन सभी साधनों के प्रयोग करने से प्रतिवर्ष लगभग 5 लाख लोगों की कैंसर से मौत हो रही है। नशावृत्ति से ना केवल मनुष्य अपितु उसके परिवार प्रतिष्ठा और सामाजिक स्थित की भी हानि होती है। वहीं दूसरी ओर नशा करने वालों को परिवार, समाज से मिलने वाले तिरस्कार के कारण आत्महत्या करने की दर पिछले 10 वर्षों में दुगनी से भी अधिक हो गयी है।
नशे के आदी व्यक्ति को सजा नहीं बल्कि दवा को जरूरत होती है। उसका बकायदा इलाज हो और उसके साथ सहानुभूति का व्यवहार भी इस समस्या का समाधान है। इसके अलावा सामाजिक स्तर पर नशावृत्ति की रोकथाम के लिए कार्यक्रम बनाना और व्यापक जागरूकता अभियान चलाया जाना चाहिए। विद्यालयों/कॉलेजों में नशामुक्ति अभियान को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाना होगा। यातायात व्यवस्था नशे से मुक्त बनें, इसका प्रयास करना होगा। मादक दवाओं के उपयोग पर कठोर दंड दिया जाना भी नशा मुक्ति संस्कृति को बढ़ावा देने से रोकने में सहायक होगी।

‘एक अवसर पर एम्स ऋषिकेश के निदेशक पद्मश्री प्रो. डॉ. रवि कांत ने कहा था कि नशा करते रहना एक प्रवृत्ति नहीं बल्कि, एक बायोलाजिकल ब्रेन डिसआर्डर है। जिसमें व्यक्ति के दिमाग में कई अस्थायी व स्थायी बदलाव आते हैं तथा इस रोग से छुटकारा पाने के लिए उपचार की नितांत जरूरत पड़ती है। नशे के रोग को इलाज (दवाओं और स्ट्रक्चर काउंसिलिंग) की मदद से ठीक किया जा सकता है। फिर भी, नशे से बचे रहने की कोई गारंटी नहीं है, क्योंकि बाहरी दुनिया का प्रभाव बहुत शक्तिशाली होता है, लेकिन अगर परिवार संस्कारों पर ध्यान दे, अपनों को समय दिया जाए तो नशावृत्ति के प्रभाव को कम किया जा सकता है। सुबह जल्दी उठना, दौड़ लगाना, नित्प योगाभ्यास, शारीरिक श्रम यह सभी मानव को नशीले पदार्थों की ओर जाने से रोकेंगी।

आयुर्वेद को अपनाने से भी नशा की वृति से छुटकारा पाया जा सकता है। बच्चों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है, इसके लिए अभिभावकों के अलावा विद्यालयों को भी अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करना चाहिए। मां-बाप को बच्चों के साथ अच्छा और नजदीको रिश्ता भी कायम करना चाहिए. जिससे उनके जीवन में होने वाली किसी भी अजीब घटना का पता उन्हें फौरन लग सके।

वर्तमान समय में समाज में व्याप्त नशावृत्ति की बुराई को दूर करने के लिए आध्यात्मिक समाधान की आवश्यकता. आज सर्वत्र अनुभव की जा रही है। यों तो सरकार द्वारा भी नशावृत्ति पर नियंत्रण रखने के लिए अनेकों उपाय किए जा रहे है और कई मामलों में सफलता भी मिल रही है, फिर भी समाज का भी कर्तव्य है कि वह नशावृत्ति और इसको बढ़ावा देने वाले साधनों का पूर्ण बहिष्कार कर अपने तन-मन और धन को व्यर्थ होने से बचाएं। यह सब कैसे किया जाए? इसका एक ही उत्तर है…’ सा प्रथमा संस्कृतिः विश्ववारा अपनी संस्कृति-हिंदू संस्कृति देव संस्कृति पर गौरव करें।

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