Opinion

राजेंद्र बाबू का रेकार्ड आजतक नहीं टूटा

राजेश झा

देश का सौभाग्य है कि शबरी वंश की बेटी श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी को १५ वां राष्ट्रपति चुनकर इसने सदियों पुरानी अपनी सामजिक व्यवस्था का पुनः परिचय विश्व को दिया हुई जिसको ‘तथाकथित भ्रमित शिक्षाविदों ‘ और ‘वामपंथी मीडिया’ एवं भ्रष्ट शिक्षा के कारण प्रभावित ‘ अधिसंख्य कुपढों ‘ ने हिंदुत्व से अलग बताने की चेष्टा पिछले ७५ वर्षों में की है। यह उनके मुंह पर करारा थप्पड़ है और देश की पुरातन समाज व्यवस्था का आकाशीय उद्घोष भी।

नेहरुवियन कांग्रेस का नैरेटिव फिर औंधे मुंह गिरा है क्योंकि तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की इच्छा के विरुद्ध ९२.२ प्रतिशत पाकर विजयी डॉ राजेंद्र प्रसाद का रेकार्ड आजतक कोई नहीं तोड़ सका। उनको १९५२ में पहली बार ८३. ८ % और १९५७ में दूसरी बार ९९ .२ % मतों से राष्ट्रपति चुने गए थे। उनके बाद राष्ट्रपति चुने गए किसी भी अन्य प्रत्याशी को ९९ .२ प्रतिशत मत प्राप्त नहीं हुए।

डॉ राजेंद्र प्रसाद के रेकार्ड के आसपास डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्ण (९८. २ % मत ), के आर नारायणन ( ९५ % मत ) और डॉ ए पी जे अबुल कलाम (८९.६ % मत ) रहे हैं।अधिक मत प्राप्त करके राष्ट्रपति बनानेवाले अन्य नाम हैं फखरुद्दीन अली अहमद ( ८० . २ % मत ) , ज्ञानी जैल सिंह ( ७२ . ७ % मत ) आर वेंकटरमन ( ७२. ३ % ) एवं प्रणव मुखर्जी (६९.३ %मत)।इनके बाद अधिकतम मत ६६ % के आसपास सिमट गया। डॉ शंकर दयाल शर्मा को ६५.९ % , प्रतिभा पाटिल को ६५ .८ % , रामनाथ कोविंद को ६५ . ७ % , डॉ जाकिर हुसैन ५६ .२ % तथा वी वी गिरि को ४८ % मत राष्ट्रपति चुनाव में मिले थे।

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