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ममतामयी द्रौपदी अब महामहिम

राजेश झा

नक्सली द्वारा एक अपंग महिला के साथ निरंतर बलात्कार से जन्मे बच्चे को झारखण्ड की राज्यपाल के रूप में गोद लेनेवाली ममता की मूर्ति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू ने आज सुबह दस बजकर १५ मिनट पर देश की १५ वीं राष्ट्रपति संसद भवन के सेंट्रल हॉल में देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद की शपथ ली। उनको चीफ जस्टिस एनवी रमना ने शपथ दिलाई। वह देश की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति हैं। सुबह सवा दस बजे द्रौपदी मुर्मू को २१ तोपों की सलामी दी गई। ,इसके साथ ही वनवासी समाज को सम्मान देने और उनको मुख्यधारा से जोड़ने की प्रतिबद्धता भी दिखी।

मुर्मू देश की 1१० वीं राष्ट्रपति हैं जिन्होने २५ जुलाई को शपथ ली। इनसे पहले भारत के छठे राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी ने २५ जुलाई १९७७ को शपथ ली थी। फिर ज्ञानी जैल सिंह, आर. वेंकटरमण, शंकर दयाल शर्मा, के.आर. नारायणन, ए.पी.जे. अब्दुल कलाम, प्रतिभा पाटिल, प्रणब मुखर्जी और रामनाथ कोविंद ने इसी तारीख को राष्ट्रपति पद की शपथ ली थी।

इस अवसर पर श्रीमती मुर्मू ने कहा ” मैं जिस जगह से आती हूं, वहां प्रारंभिक शिक्षा भी सपना होता है। गरीब, पिछड़े मुझे अपना प्रतिबिंब दिखाते हैं। मैं भारत के युवाओं और महिलाओं को विश्वास दिलाती हूं कि इस पद पर काम करते हुए उनका हित मेरे लिए सर्वोपरि रहेगा। संसद में मेरी मौजूदगी भारतीयों की आशाओं और अधिकारों का प्रतीक है। मैं सभी के प्रति आभार व्यक्त करती हूं। आपका भरोसा और समर्थन मुझे नई जिम्मेदारी संभालने का बल दे रहा है।

मैं पहली ऐसी राष्ट्रपति हूं जो आजाद भारत में जन्मी। हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने भारतीयों से जो उम्मीदें लगाई थीं, उन्हें पूरा करने का मैं पूरा प्रयास करूंगी। राष्ट्रपति के पद तक पहुंचना मेरी निजी उपलब्धि नहीं है, यह देश के सभी गरीबों की उपलब्धि है। मेरा नॉमिनेशन इस बात का सबूत है कि भारत में गरीब न केवल सपने देख सकता है, बल्कि उन सपनों को पूरा भी कर सकता है।’

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