RSSकोकण प्रान्त

निरंतर जागृत देशभक्ति यही हमारी भावना

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, कोंकण प्रांत द्वारा आयोजित, बौद्धिक श्रृंखला का चतुर्थ बौद्धिक, दिनांक, सितंबर २७, २०२० को विश्व  संवाद केन्द्र के ‘You Tube Channel’ पर श्याम ५ बजे प्रसारित हुआ। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय कार्यकारणी सदस्य माननीय सुहासराव हिरेमठ जी, उन्होने इस बौद्धिक वर्गमें उद्बोधन किया। सुहासराव जी मूल महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के स्वयंसेवक हैं। प्रारंभ में, तीन वर्ष वे सांगली जिलेमें तालुका प्रचारक रहें, फिर एक वर्ष गोमांतक जिला प्रचारक, सात वर्ष सातारा जिला प्रचारक, फिर सात वर्ष पुणे महानगरके प्रचारक रह चुके हैं। आप एकत्रित कोंकण और पश्चिम महाराष्ट्र प्रांतके सहप्रांत प्रचारक थे। जब पश्चिम महाराष्ट्र विलग प्रांत बना तब आप पश्चिम महाराष्ट्र के प्रांत प्रचारक बने। दस वर्षों तक अखिल भारतीय सेवा प्रमुख रहने के बाद  २०१७ से अखिल भारतीय कार्यकारणी सदस्य हैं।

सुहासरावजीने अपने उद्बोधनके प्रारंभ में कहा की, यह बौद्धिक वर्ग राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, कोंकण प्रांत के बौद्धिक वर्ग श्रृंखला का आख़िरी वर्ग हैं। पिछले तीन बौद्धिक वर्गके वक्ता संघके जेष्ठ, श्रेष्ठ और अध्ययनशील अधिकारी थे। अपने कोंकणकी एक विशेषता हैं, त्यौहारके दिन भोजनमें विभिन्न स्वादिष्ट व्यंजन होते हैं। पर भोजनके अंत में हम छास और चावल ग्रहण करते हैं। उसी नियम अनुसार, हम सभी को पिछले तीन बौद्धिक वर्गोंमें विचार प्रवर्तक मार्गदर्शन मिला, लेकिन आज का बौद्धिक, छास और चावल की तरह सौम्य रहेगा। संघकी स्थापना अंग्रेजी दिनदर्शिकाके अनुसार सितंबर २७, १९२५ में हुई। आज संघको ९५ साल पुरे हो चुके हैं। इसी कारण संघकी आयु और व्याप्तिको देखकर संघ को वर्धिष्णुः कहकर उसकी स्तुति की जाती हैं। ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कार्पोरेशन, लंदन इस वृत्तपत्र संस्थाने ३५ साल पूर्व संघके बारेमें कहा था, की “संघ विश्व का सबसे विशाल स्वयंसेवी संगठन हैं।” भारतके सभी राज्यके लगभग सभी जिलोंके ८० प्रतिशत तालुकामें संघकी दैनंदिन शाखा, साप्ताहिक मिलन और मासिक मिलनके रूपमें एक लाख गावमें संघके उपक्रम चल रहे हैं। भारत के दो लाखसे अधिक गाँवमें संघके एक करोड़से ज़्यादा ज्ञात और अज्ञात स्वयंसेवक हैं। संघके ज्ञात स्वयंसेवक यानि शाखाके पास, नगरोंके पास, भागके पास उन स्वयंसेवकोंकी सूची होती हैं, उन्हें ज्ञात स्वयंसेवक कहते हैं। जो स्वयंसेवक कुछ सालोंके लिए संघमें आये थे, संघ के कार्यक्रम और उत्सव में शामिल हुए थे, गणवेश पहन कर संघके संचलन में भाग लिया था, पर किसी कारण अपने घरसे, या संघकी शाखासे दूर गये, ऐसे कूल मिला कर स्वयंसेवकों की संख्या १ कोटिके ऊपर हैं। ५० से भी अधिक देशोमें स्वयंसेवक हिंदू समाजका जागरण, हिंदू समाजका संगठन और हिन्दू संस्कृतिका का रक्षण कार्य कर रहें हैं। इसके अलावा और ३० देशोमें संघ के स्वयंसेवकों का संपर्क हैं। विदेशों में जो कार्य चलता हैं, वो भारतीय स्वयंसेवक संघ, हिंदू स्वयंसेवक संघ या फिर सनातन स्वयंसेवक संघ, ऐसे विभिन्न नामोंसे चलता हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघका उदिष्ट, संघके शाखा की दैनिक समाप्ति पर, परम पवित्र भगवा ध्वज को साक्षी मानकर, सुमधुर स्वरोंमें गाए जानेवाले प्रार्थना हैं। “परं वैभवं नेतुमेतत् स्वराष्ट्रं” यानि ‘हम हिंदू राष्ट्रकों वैभवसंपन्न, समृद्ध और विश्वमें सन्मानित बनाएँगे’ हम सभी स्वयंसेवक इसी उद्दिष्टकों मध्य नज़र रखते हुए, हर एक संघकार्य करते हैं। हम सबके मनमें यह सवाल प्रकट होगा, इस महान उद्दिष्टको हासिल कैसे करे? संघके संस्थापक परम पूजनीय डॉ. केशव बलिरामपंत हेडगेवारजीने इसका चिंतन औरीय डॉ. केशव बलिरामपंत हेडगेवार  निष्कर्ष करते कहा था की यह संभव हैं। इसके लिए सबसे पहली आवश्यकता हैं, हिंदू समाजका संघटित सामर्थ्य। विश्वमें किसी भी देश का उत्थान उस देशमें रहनेवाले पुत्र-रूप समाजका संघटित सामर्थ्य होता है। पुत्ररूप समाजका निर्माण, यानि अपने राष्ट्रको माताके सामान दर्जा देनेवाले, स्वयंको राष्ट्रका पुत्र माननेवाले, अपने समाजके लोगोंको अपना भाई-बहन माननेवाले। सुहासरावजीने कहा, भारतके हर परिवारमें मुखिया होते हैं। उनकी इच्छा होती हैं, की उनके परिवारको सुख, समृद्धि, सुरक्षा और सम्मान मिले। परिवारका सुख, समृद्धि, सुरक्षा और सम्मान, ये सब परिवारके पड़ोसी, रिश्तेदार इनपर निर्भर नही हैं, यह सब बाते उस परिवारके मानसिकतापर निर्भर हैं। परिवारमें रहनेवाले हर एक सदस्यको यह परिवार मेरा हैं, मैं परिवारका अभिन्न अंग हूँ, परिवारका सुख-दुःख ये मेरा सुख -दुःख, परिवारका सम्मान यह मेरा सम्मान, परिवारका अपमान यह मेरा अपमान, परिवारपर संकट, यह मेरा संकट यह भावना होनी चाहिए। परिवारके हितके लिए, मैं अपने वैयक्तिक हितको तिलांजलि देनेके लिए तैयार हूँ। यही भावना हमे राष्ट्रके प्रति होनी चाहिए। भारतकी विशेषता हैं, देश में अनेक जाती हैं, अनेक पंथ-संप्रदाय हैं, अनेक भाषाएँ बोली जाती हैं, अनेक प्रांत हैं, ऐसी विविधतासे भारत बना हैं। हमे अपनी जाती, पंथ-संप्रदाय, भाषा और प्रांतका अभिमान होना चाहिए, पर वह अभिमान राष्ट्र अभिमानसे बढ़कर होने देना नहीं हैं। राष्ट्र अभिमान यह हमेशा श्रेष्ठ होना चाहिए, नहीं तो सिर्फ राष्ट्रका नहीं, उस समाजकाभी नुकसान होता हैं। संघ समाजको इन सभी बातोंसे ऊपर उठाकर राष्ट्र उन्नतिकी राह पर ले चलता हैं। हमे यह संघटित समाजका लक्ष्य असंभव लगता हैं, क्योंकि भाषा, जाती, प्रांत इन सबमें विविधता हैं। हम हिन्दुस्तानियोंके मनमें इन सभी बातोंके बावज़ूद एकताकी भावना पल रही हैं। जैसे फूलोंकी मालामें विविध फूल रहते हैं, और वे विविध फूल उस मालाकी शोभा बढ़ाते हैं, उसी प्रकारसे यह विविधता भारतकी शोभा बढाती हैं। इन विविध फूलोंको मालामें जोड़े रखनेका काम धागा करता हैं। ठीक उसी प्रकार हम सभी भारतीयोंको एक दूसरेसे जोड़े रखनेका काम यह हिंदुत्व करता हैं। हिंदू कोई जाती-संप्रदाय, पूजा पद्धति या धर्म नहीं हैं। हिंदुत्व इस भारत देशके राष्ट्रीयता का नाम हैं। केवल संघने नहीं, तो पिछले कई वर्षोंमें स्वामी विवेकानंद, योगी अरविंद, लोकमान्य बाळ गंगाधर टिळक, स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर जैसे महापुरुषोंने इस बातको कहाँ हैं। भारतके पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्ण, इन्होने कहा था की, हिंदू यह एक जीवन पद्धति हैं। जाती, पंथ-संप्रदाय, भाषा और प्रांत भिन्न होनेके पश्च्यात हम सबकी राष्ट्रीयता एक हैं, और यह राष्ट्रीयता हिंदू हैं। जब हिंदुत्वका राष्ट्रीय भाव हम सबके मनमें जागृत था, तब हमने विजय प्राप्त किया हैं। जब यह राष्ट्रीय भाव दुर्बल होकर, संकुचित भाव प्रबल हो गया तब हमारा पतन हुआ हैं। संघके एक गीतमें कहा हैं, “हिंदू भाव को जब जब भूले आई विपदा महान। भाई टूटे धरती खोई मिटे धर्म-संस्कार।।” आज इस देशमें रहनेवाले हर एक मुसलमान और ईसाइके पूर्वज हिंदू थे। हमारे देशके पूर्व राष्ट्रपति ज़ाकिर हुसैनजीने कहा था मेरे परदादा हिंदू थे उनका धर्मांतरण हुआ, और तबसे आगेकी पीढ़िया मुसलमान हैं। दिल्लीके शाहीन बागमें सुधारित नागरिकत्व क़ानूनके खिलाफ़ जो मुसलमानोंने आंदोलन किया वो राष्ट्रीयताके विरुद्ध था। सुधारित नागरिकत्व क़ानूनसे मुसलमानोंके नागरिकत्वको कोई धोका नहीं था, यह बात ज्ञात होनेके बावज़ूद उन्होंने राष्ट्र के खिलाफ आंदोलन किया। हमने अखंड भारतके धरतीका बहुत सारा हिस्सा खो दिया हैं। द्वापार युगमें [महाभारत काल] अखंड भारतकी पश्चिम सीमा ईरान तक थी। यह तो पिछले युग की बात हुई। १८७५ में अफग़ानिस्तान भारत देशमें शामिल था, तब उसका नाम उपगणस्तान था। अफग़ानिस्तानके हिंदुकुश पर्वतसे अखंड भारतकी सीमा शुरू होती थीं। उत्तरमें हिमालय पर्वत, पूर्वमें ब्रम्हपुत्रा नदी तक, दक्षिणमें हिंद महासागर तक अखंड भारतकी सीमाएँ थीं। अखंड भारतका क्षेत्रफ़ळ ८३ लाख चौरस कि. मी. था। इस्लाम और अंग्रेजोंके आक्रमणके कारण १८७५ से १९४७ तक अफ़ग़ानिस्तान, नेपाल, श्रीलंका, तिबेट, भूटान, म्यानमार और अंतमें पूर्व और पश्चिम पाकिस्तान भारतसे अलग हुए। १८७५ में अखंड भारतका क्षेत्रफळ ८३ लाख चौरस कि. मी. था, वो १९५० में ३३ लाख चौरस कि. मी. रह गई हैं। ५० लाख चौरस कि. मी. ज़मीन हम गवा बैठे। आज २०२० में ३१ लाख चौरस कि. मी. ज़मीन भारतके पास हैं। १ लाख चौरस कि. मी. ज़मीन यानि अक्साई चीन, चीनने हड़प लि, और ८२ हजार चौरस कि. मी. ज़मीन पाकिस्तानने हड़प क़ि। जवाहरलाल नेहरूने श्रीलंकाको कटचथीवू द्वीप दिया, म्यानमारको कोको नाम का द्वीप दे दिया। पा. वें. नरसिंहारावने ‘तीन बिघा’ ज़मीन बांग्लादेशके नाम कर दि। अगर हिंदू समाज सुसंगठित होता तो इतनी सारी ज़मीन खोनेकी नौबत हमपर नहीं आती। 

अपने देशके हर एक नागरिकको चरित्र संपन्न बनाना यह दूसरी बात हैं, जो परम पूजनीय आद्यसरसंघचालकजीने कही थी। भारत देश हजारों वर्षोंसे इस दुनियामें प्रसिद्ध हैं, तो वो अपने उच्च चरित्र्य के लिए। “एतद्देशप्रसूतस्य सकाशादग्रजन्मनः। स्वं स्वं चरित्रे शिक्षेरन् पृथिव्यां सर्वमानवाः॥” इस देशमें समुत्पन्न ब्राह्मज्ञानी [विद्वान] से पृथ्वीके समस्त मानव अपने अपने चरित्र्यकी शिक्षा ग्रहण करें। रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्योंमें चरित्र्यकी श्रेष्ठता और चरित्र्य-हीनतासे नुकसानके कई सारे प्रसंग, कहानियाँ सुनने मिलती हैं। स्वामी विवेकानंदजीने अंग्रेजोंसे कहा था, In your culture tailor makes gentlemen, But in our culture character make gentlemen. दुर्भाग्यसे हमारे देशके चरित्र्यका अध:पतन होता गया। हजारों वर्षोंसे भारतमें चारित्र्यकी पूजा की जाती हैं। लोंग धनवानोंको नमस्कार करते हैं, बलवानोंको नमस्कार करते हैं, सत्ताधीशोंको नमस्कार करते हैं। यह नमस्कार भयके कारण, स्वार्थके कारण किया जाता हैं, लेकिन लोंग चरित्र्यवान महानुभवकोंही पूजेँगे। हमे चरित्र्य निर्माणकी आवश्यकता हैं। पुस्तक पढ़नेसे, चित्रपट देखनेसे, प्रवचन सुननेसे चरित्र्य निर्माण नहीं होता। क्योंकि इन चीजोंका प्रभाव अल्प समयके लिए होता हैं। परम पूजनीय आद्यसरसंघचालकजीने चार बातोंका ज़िक्र सनातन रूपमें चरित्र्य निर्माणके लिए किया हैं।

. व्यक्तिके आँखोंके सामने कोई श्रेष्ठ, महान ध्येय होना चाहिए। श्रेष्ठ ध्येय वो होता है जो समाज, राष्ट्र, और सारे सृष्टिके कल्याण और हितके विचारमें हों। इसीलिए संघकी प्रार्थनामें परं वैभवं नेतुमेतत् स्वराष्ट्रंका ज़िक्र किया हैं।

. व्यक्तिको उस ध्येय अनुरूप संस्कार नित्य मिलने चाहिए।

. सुसंस्कारित व्यक्तियोंके सानिध्यका लाभ हमे मिलें।

परम पूजनीय आद्यसरसंघचालकजीने इन तीनो बातोंको नित्य शाखासे प्राप्त करनेका सफल प्रयास किया। शाखामें आनेवाले हर एक स्वयंसेवकके सामने महान ध्येय रखा जाता हैं, संस्कारभी ध्येयानुरूप होते है, संघकी शाखा, बैठक, प्रवास, उत्सव, कार्यक्रम, शिबिर, वर्गमें जानेसे सुसंस्कारित लोगोंका सानिध्य मिलता हैं। देशमें संघके सिद्धांतों, विचार, कार्यपद्धति, कार्यक्रमके बारेमें मतभेद हो सकते हैं, पर स्वयंसेवकके चरित्र्यपर कोई संदेह नहीं करता। चारित्र्य निर्माणका कार्य परिवार, महाविद्यालये और अन्य धार्मिक कार्यक्रमोंसे भी होना चाहिए।

४. निरंतर जागृत देशभक्ति। हम सभी लोगोंमें देशभक्तिकी भावना हैं। हम अपने-आपको इस भारतमाता का पुत्र मानते हैं, इस समाजको अपना मानते हैं, महापुरुषोंको अपना आदर्श मानते है। पर वो देशभक्ति की भावना सुप्त रूपमें हैं। जब संकट आता हैं, तब देशभक्तिकी भावना जागृत होती हैं। १९६२ का चीनका युद्ध, १९६५ और १९७२ का पाकिस्तानसे हुआ युद्ध, १९९९ का कारगिल युद्ध, २६/११ मुंबईमें हुआ आतंकवादी हमला इन सभी घटनाओंके वक्त राष्ट्रभक्ति जागृत हुई। देशका हर एक नागरिक उस संकटको निरस्त करनेके लिए और देश समाजकी रक्षा करनेके लिए कुछभी करनेको तैयार होता हैं। पर यह संकट समाप्त होने पर यह देशभक्ति सो जाती हैं। जिस देशके नागरिकों की देशभक्ति समुन्दर के लहरों की तरह ज्वार-भाटा होती हैं, वो देश कभी सुरक्षित नहीं होता। अमेरिका, जापान, इसराईल जैसे देशोंकी विशेषता हैं, सामान्य व्यक्तिके जीवनमेंभी देशभक्तिकी भावना हैं। राष्ट्र महान बनाना हैं, तो हर एक व्यक्तिने नित्य जीवनमें राष्ट्रभक्तिसे परिपूर्ण व्यवहार करना चाहिए। कोरोना महामारी जिससे सारी  दुनियाँ प्रताड़ित हैं, वह कोरोना महामारी चीनके वुहान प्रांतके  प्रयोगशालासे सारी दुनियाँमें फैली हैं। कोरोना महामारीके कारण सारे विश्वको आर्थिक संकट और जीवितहानिका सामना करना पड़ा। चीन भारतको सीमावादमें उलझाकर, युद्ध परिस्थिनी निर्माण कर रहा हैं। चीनका हमारे जीवनावश्यक वस्तुओंके बाजारपर सबसे बड़ा प्रभाव हैं। इसिलए हमारे राष्ट्रके आदरणीय प्रधानमंत्री श्रीं. नरेंद्र दामोदर मोदीजीनेआत्मनिर्भर भारत का संकल्प बनाया। Vocal For Local नारा हमे दिया। Zee News ने स्वदेशी मालके प्रचारमें अभियान चलाया। पर इस संपूर्ण अभियानका असर धीरे धीरे बढ़ रहा हैं। चीनके शाओमी मोबईल कंपनीने, अपना नया उत्पादन भारतमें प्रसारित करने पर, केवल एक दिनमें एक लाख तीस हज़ार मोबईलकी बिक्री हुई, ऐसा वृत्त चीनके कम्युनिस्ट सरकारके ग्लोबल टाइम्स इस वृत्तपत्रने प्रसिद्ध किया। ग्लोबल टाइम्स, आनेवाली ख़बर विश्वासके पात्र नहीं होती, जैसे लोकसत्ताके संपादक, सामनाके कार्यकारी संपादक और NDTV News के रविश कुमार विश्वास ऱखनेके पात्र नहीं हैं। आज भारतमें ऐसा एकभी परिवार नहीं हैं, जिसके घरमें चीनी या अन्य विदेशी वस्तुएँ नहीं हैं। हमे विदेशी वस्तुओंको त्याग कर स्वदेशी वस्तुओंको अपनाना होगा। जब तक देशभक्तिकी भावना हम दैनंदिन जीवनमें प्रकट नहीं करते, तब तक देशकी प्रगति नहीं होंगी। जबभी राष्ट्र पर संकट आता हैं, संघके स्वयंसेवक हमेशा मदत कार्यके लिए तत्पर रहते हैं। कभी कभी  तो स्वयंसेवकोंने अपने प्राणोंको दावपर लगाकर संघकार्य किया हैं। यही संघकार्य चिरंतन देश भक्तिका उदाहरण हैं। आजके समयमें डेढ लाखसे ज़्यादा मदतकार्य संघके स्वयंसेवकोंद्वारा देशमें पिछड़े समाजके बांधवोंके लिए चलाए जाते हैं। राष्ट्रभक्तिसे प्रेरित यह संघकार्य ईश्वरी कार्य हैं। संघके ईश्वरी कार्यके पीछे एक दैवी शक्तिका आशीर्वाद हैं। उस आशीर्वादको सिर्फ स्वयंसेवक महसूस कर सकते हैं। संघके विरोधक इस दैवी शक्तिको नहीं समझ सकते,   उसका अनुभव नहीं कर सकते। हम इस दैवी शक्ति को मातृशक्ति कहते हैं। यह मातृशक्ति यानि स्वयंसेवककी माता, पत्नी और बहन यानि स्वयंसेवकके घरकी स्त्रीशक्ति हैं। संघ में प्रचारक पद्धति हैं। यानि कोईभी युवा स्वयंसेवक अपनी शिक्षा पूरी करनेके बाद, अपरिचित क्षेत्रमें  संघ कार्यको बढ़ावा देने, अपने माता पिताका घर छोडके, अपने भाई-बहनको छोड़के घरसे दूर चला जाता हैं। जब संघके प्रचारक उनके दिए हुए स्थानपर संघकार्य करने चले जाते हैं, तब वहाँके स्थानीय स्वयंसेवकोंके माताऍ उस प्रचारककी माता बन जाती हैं, स्वयंसेवकोंकी बहनें उस प्रचारकको अपना भाई मान लेती हैं। संघ के प्रचारक उस घरके एक पारिवारिक सदस्य बन जाते हैं। राष्ट्र सेविका समिति, विश्व हिंदू परिषद, वनवासि कल्याण आश्रम, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ऐसे विभिन्न संघटनमें महिलाएँ कई प्रकारकी जिम्मेदारियाँ सक्रिय रुपसे संभाल रही हैं।

सुहासरावजी ने अपना एक अनुभव कथित किया। जब वे सातारा जिले के जिला प्रचारक थे, तब उनके भोजन की व्यवस्था सतारा शहर के स्वयंसेवकों के घर पर की जाती थी। सुहासरावजी की भोजन व्यवस्था एक माह के लिए सातारा शहर के किसी एक स्वयंसेवक के घर थी। उस माह के किसी एक मंगलवार को सुहासरावजी सातारा जिले के दूसरे तालुका में प्रवास के लिए जानेवाले थे।  उन्होंने  उस स्वयंसेवक के माता से कहा, के वे भोजन के लिए अगले दो तीन दिन नहीं आएँगे। वे शुक्रवार को भोजन के लिए उनके घर आएँगे। शुक्रवार के दिन सुहासरावजी सुबह ९ बजे उस तालुका से सातारा शहर जानेवाली बस में बैठे। उस प्रवास में लगनेवाल समय कुलमिलाकर ४५ मिनट से १ घंटे का था। सुहासरावजी ने सोचा के वे सुबह १० बजे संघ के कार्यालय में पहुँचेंगे, अपने निजी काम करके दोपहर १२ बजे उस स्वयंसेवक के घर भोजन के लिए जाएंगे। थोड़ी दूर जाने के बाद उनकी बस रास्ते में बिगड़ हुई। बस चालक के प्रयास करने के बावजूद बस चालू नहीं हुई। बस के वाहक ने सभी यात्रियोंको सातारा शहर जानेवाली बस में बैठ दिया। इन सब बातों मे, सुहासरावजी को संघ कार्यालय पहुँचने मे दोपहर के १२ बज गए। अपने निजी काम निपटाकर वे उस स्वयंसेवक के घर भोजन के लिए दोपहर को १ बजे जाने निकले। जब सुहासरावजी रस्ते में चल रहे थे तब उन्होंने उस स्वयंसेवक की माता को उनकी तरफ़ रस्ते सें आते हुए देखा। सुहासरावजी ने उनसे पूछा के आप कहा जा रही है? उस माताजी ने जवाब दिया के, जब मंगलवार के दिन सुहासरावजी प्रवासपर गए थे, तब उन्हें तेज सर्दी-जुकाम था। उस माताजी को लगा के सुहासरावजी कार्यालय में बीमार होंगे, तो उनके मदत के लिए वे संघ कार्यालय जा रही थी। यह सुनकर सुहासरावजी को अपने सगी माता की याद आयी। संघ के प्रचारकों को ऐसे कई सारे प्रसंग अनुभव करने मिलते हैं।  

बौद्धिक वर्ग अंतमें सुहासरावजीने कहाँ, हमने यह सभी बौद्धिक वर्ग अपने परिवार के साथ एकत्रित सुने, हमे इस बातसे समझाना चाहिए, राष्ट्र को वैभव संपन्न करने का कार्य सारे परिवारको मिलकर करना हैं। ईश्वरीकार्यका प्रारंभ हमेशा परिवारको मिलकर करना हैं। हमारा परिवार संघ का परिवार हैं, और हमारे परिवार को आदर्श हिंदू परिवार होना चाहिए। हमें, कई और सारे परिवारों को संघके ईश्वरी कार्यसे जोड़ना हैं, ताकि २०२५ में संघ के शताब्दी वर्ष में समृद्ध, वैभव संपन्न भारत देश हम सभीको देखने मिलेगा और स्वामी विवेकानंदजीकी भविष्यवाणी, भारतमाता जगस्थगुरू सिंहासनपर आरूढ़ और तेजोमय आभा से, वो मंडित हो गई हैं, और अपने दोनों हात ऊँचे उठाकर संपूर्ण विश्व को अभयदान दे रही हैं, यह सच साबित होंगा।

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