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नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मौत के रहस्य को सुलझाने के लिए ताइवान ने देश के लिए खोले अपने दरवाजे

ताइपे सिटी : महान स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मौत आज भी हर किसी के लिए एक रहस्य है. ताइवान ही वह आखिरी देश था जहां आखिरी बार नेता जी नजर आए थे. दरम्यान, एक बार फिर से ताइवान ने नेताजी की मौत पर सवाल उठाते हुए अपने राष्ट्रीय अभिलेखागार को इसकी जांच करने के आदेश दिए हैं. तथा नेताजी से जुड़ी विरासत को खोजने के लिए अपने राष्ट्रीय अभिलेखागार के दरवाजे भारत के लिए खोल दिया है. ताइवान ने कहा है कि भारत नेताजी से जुड़ी जानकारियों को यहां तलाश सकता है. ताइवान का प्रस्ताव है कि भारत नेशनल आर्काइव और डेटाबेस को देख सकता है.

ताइपे इकोनॉमिक एंड कल्चरल सेंटर के उप प्रतिनिधि मुमिन चेन 22 जनवरी को एक कार्याक्रम के दौरान कहा कि हमारे पास राष्ट्रीय अभिलेखागार और कई डेटाबेस हैं. हम भारतीय मित्रों की यह पता लगाने में मदद कर सकते हैं कि नेताजी और उनकी विरासत के बारे में ज्यादा जानकारी हासिल हो सके. नेता जी का 1930 और 1940 के दशक में ताइवान पर बड़ा प्रभाव रहा है.

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, नेताजी की मौत के बाद जापान की एक संस्था ने खबर जारी की थी. सुभाष चंद्र बोस का विमान ताइवान में दुर्घटनाग्रस्त हुआ था, इसकी वजह से उनकी मौत हो गई. किसी देश की संस्था से ऐसा बयान आने पर इस हादसे को सच माना जा सकता था. मगर कुछ ही दिन बाद जापान सरकार ने कहा था कि ताइवान में उस दिन कोई विमान हादसा नहीं हुआ. इस बयान के कारण संशय और बढ़ गया.

हालांकि, भारतीय दस्तावेजों के मुताबिक, सुभाष चंद्र बोस की मौत 18 अगस्त 1945 में एक विमान हादसे में हुई. माना जाता है कि सुभाष चंद्र बोस जिस विमान से यात्रा कर रहे थे. वह रास्ते में लापता हो गया. उनके विमान के लापता होने से ही कई सवाल खड़े हो गए कि क्या विमान दुर्घटनाग्रस्त हुआ था? क्या सुभाष चंद्र बोस की मौत एक हादसा थी या हत्या? बता दें कि ताइवान, जो 1940 के दशक में जापान के कब्जे में था, वह आखिरी देश था, जिसने नेताजी को जीवित देखा था. जबकि आम सहमति है कि 1945 में ताइवान में एक विमान दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई थी. ताइवान के प्रतिनिधि ने कहा है कि बहुत से युवा इतिहासकार दक्षिण पूर्व एशिया के साथ यहां तक कि भारत के साथ भी शोध कर रहे हैं. बहुत सारे ऐतिहासिक दस्तावेज, नेताजी पर साक्ष्य, भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन और दस्तावेज ताइवान के अलग-अलग आर्काइव में हैं.

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार सुभाष चंद्र बोस की मौत इसलिए भी रहस्य बनी हुई है, क्योंकि उस समय जवाहर लाल नेहरू ने बोस के परिवार की जासूसी कराई थी. इस मामले पर आईबी की दो फाइलें सामने आ चुकी है, इसके बाद विवाद सामने आया. इन फाइलों के मुताबिक, आजाद भारत में करीब दो दशक तक आईबी ने नेताजी के परिवार की जासूसी की. कई लेखकों ने इसके पीछे तर्क दिया कि तत्कालीन पीएम जवाहर लाल नेहरू को भी सुभाष चंद्र बोस की मौत पर विश्वास नहीं था, इसलिए वह बोस परिवार को ​लिखे पत्रों की जांच करवाते रहे ताकि अगर कोई नेताजी के परिवार से संपर्क साधे तो पता चल सके.

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