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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र मे भारत का योगदान: भाग 12

विशेष माहिती श्रृंखला : भाग 12 (12-30)

जैव रासायनिकी और भारतीय विज्ञान

जीवित तंत्रों और जैव रासायनिकों में एन्जाइमों द्वारा उत्प्रेरित रासायनिक अभिक्रियाओं से संबंधित विज्ञान को जैव रासायनिकी का नाम दिया गया हैं।

वैदिक काल में फर्मेन्टेशन द्वारा मधु, सुरा व सोम आदि रासायनिक घोलों को तैयार करने की विधि मालूम थी । ऋग्वेद की 600 से अधिक ऋचाओं में किण्वित (fermented) घोलों का वर्णन है । दही अर्थात किण्वित दूध, आहार एक महत्वपूर्ण अंग था ।

कौटिल्य के अर्थशास्त्र में काले चने और चावल के मिश्रित पेस्ट के किण्वन से प्राप्त पेस्ट का संदर्भ आता है जो आज के इडली पेस्ट के समान था । अर्थशास्त्र में शासन-नियंत्रित रासायनिक घोलों के उत्पादन व उपयोग का उल्लेखभी आता है । विभिन्न पदार्थों के किण्वन से प्राप्त मेदक व प्रसन्न आदि 6 प्रकार के रासायनिक घोलों के बारे में चर्चा की गयी है ।

छांदोग्योपनिषद् में खाद्यान्न पाचन प्रक्रिया, मांस-पेशी, खून, अस्थिमज्जा की निर्माण विधि, शारीरिक व मानसिक गतिविधियों के लिये ऊर्जा उपलब्ध कराने की प्रक्रिया एवं अन्न के अप्रयुक्त भाग का त्याग आदि प्रक्रियाओं का वर्णन है।

धातुओं व रत्नों से भस्म निर्माण, खनिज-शोधन एवं धातुओं के निष्कर्षण व शुद्धीकरण का कार्य प्रयोगशाला में किया जाता था । यह जंगल में स्थित थी जहां औषधीय पादपों की प्रचुर उपलब्धि थी और इसकी सुरक्षा के लिए चारों ओर ऊंची दीवार थी । रसरत्न समुच्चय में ऐसी ही एक प्रयोगशाला का विवरण दिया गया है।

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